Ramcharitmanas
ढोल गवांर सूद्र पसु नारी, सकल ताडना के अधिकारी। .... रामचरित मानस (सुंदर कांड) दोहा-58 काटेहिं पर कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच। बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।। अर्थ- काकभुसुंडि जी कहते हैं - हे गरुड़ जी! सुनिए चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है। नीच विनय से नहीं मानता, वह डांटने पर ही झुकता है अर्थात रास्ते पर आता है... ********* चोपाई - सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे, छमहु नाथ सब अवगुन मेरे। गगन समीर अनल जल धरनी, इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी ।। 1।। अर्थ - समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़ कर कहा - हे नाथ मेरे सब अवगुण अर्थात दोष क्षमा कीजिए। हे नाथ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी इन सब की करनी स्वभाव से ही जड़ है.. ********** तव प्रेरित मायाँ उपजाए, सृष्टि हेतु सब ग्रंथिन गाए। प्रभु आयसु जेहि जस अहई, सो तेहि भाँति रहें सुख लहई ।। 2।। अर्थ - आप की प्रेरणा से माया ने इन्हें सृष्टि के लिए उत्पन्न किया है, सब ग्रंथों में यही गाया है जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा है वह उसी प्रकार से रहने में सुख पाता है.. ********* प्र...