कुछ नया करते हैं
New India इस बात पर ज़रा गौर किया जाय कि वास्तव में जातीय-धार्मिक संकट सबसे ज्यादा कब होता है? तो हमारे देश में जब चुनाव होने वाला हो तब होता है और उस वक्त किसी खास तरह की घटनाओं में भरपूर इजाफा हो जाता है। जिसको मीडिया लगातार सनसनी खेज बनाए रखता है। फिर घरों में बैठकर गरमा गरम लाइव डिबेट देखने का अपना ही मजा है। खैर! इस वक्त दलितों और अल्पसंख्यकों पर जिस खतरे का लगातार जिक्र हो रहा है, वह वास्तव में खुद को इनका नेता मानने वाले लोगों के सामने अपना राजनीतिक भविष्य बचाने का संकट है। जिसे असुरक्षा बोध को और मजबूत करके हासिल किया जा सकता है। यह असुरक्षा बोध जितना मजबूत होता है, राजनीति का काम उतना ही आसान हो जाता है क्योंकि अब लोग अपने नेता पर न तो शक़ करते हैं और न कोई सवाल। इस तरह जब भी जातीय, धार्मिक पहचान सर्वाधिक महत्वपूर्ण बना दिए जाते हैं, तब वास्तविक समस्याओं से बेहाल जनता यह भूल जाती है कि उसे समस्या किस बात की है? जब भी जातीय, धार्मिक पहचान का कथित संकट आता है। तब-तब लोग खुद को उसी पहचान के दायरे में समेटने लग जाते हैं और इसका प...