kisan-politics


आम लोगों के वाजिब हक के लिए हमारे राजनेता कितने संवेदनशील हैं इसका अंदाजा हम भोपाल गैस कांड से लेकर, हाल में हो रहे किसान आन्दोलनों से लगा सकते हैं | जहाँ हर राजनैतिक दल अपनी चुनावी जरूरतों को पूरा करने में लगा है, चुनाव नजदीक आते ही किसी भी मुद्दे का अर्थ पूरी तरह से बदल जाता है. कहीं हिंदी भाषियों पर हमले होने लगते हैं, तो दूसरी तरफ भाषा और संस्कृति कि याद आने लग जाती है या फिर अचानक धर्म और सम्प्रदाय के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है | सारे मुद्दे और जरूरतें नेताओं के हाथ में आते ही राजनीतिक अखाड़े कि मुहरे बन जाती हैं और सत्ता हो या विपक्ष बारी-बारी अपनी रोटियां सकने में लग जाते हैं | आज तक कोई भी बड़ा नेता किसी विरोध प्रदर्शन के दौरान  पुलिस कि लाठी या गोली का शिकार नहीं हुआ | वह हमेशा आम आदमी ही होता है,    जो किसी न किसी तरीके से व्यवस्था का शिकार होता रहता है |

                                                                              आज भी देश के सम्मुख सबसी बड़ी समस्या किसानों कि ही है और अब तक किसानों के लिए कोई स्पष्ट नीति बनाने और लागू करने में सभी  सरकारे नाकाम रही हैं | सरकार उद्योगपतियों के साथ सांठगांठ करके उन्हें मनमाने ढंग से किसानों कि उपजाऊ ज़मीन सौंप देती है | इससे सरकार समर्थित माफिया और बिल्डर को ही फायदा पहुंचता है | ए सरकार के साथ मिलकर भरपूर दौलत बनाते हैं और किसान ठगा सा रह जाता है, वह जिस खेत में काम करता था जो उसे न केवल पूरे समय व्यस्त रखता था बल्कि उसके जीवन -यापन का एक ढंग भी था, वह ख़त्म हो जाता है | मुआवजे कि सही गलत राशि का वह ठीक ढंग से इस्तेमाल कर सकने में सक्षम नहीं होता और एक नई समस्या उठ खड़ी होती है | अब वह बेकार होकर नशाखोरी और अपराध में लिप्त हो जाता है | सरकार पुनर्वास के दावे करती रहती है पर क्या सरकार लोगों कि जीवन शैली और जरूरतों को एक निश्चित योजना से पूरी कर सकती है ? आज तक कोई भी पुनर्वास कार्य  विस्थापित लोगों को संतुष्ट नहीं कर सका है | फिलहाल इस खरीद फरोख्त में बड़े किसानों को कुछ फायदा तो हो जाता है पर छोटे किसान अपने उसी खेत पर फिर आते हैं जहाँ आलीशान इमारत बन चुकी होती है और लाइन में खड़ा इंतजार कर रहा होता है कि इस बार जरूर कोई काम मिल जाएगा और किसी तरीके से जिंदगी चलती रहेगी | यह सब हमारे किसान हित कि नहीं बल्कि किसान राजनीति का परिणाम है , जहाँ किसान मुद्दा भी वोट पाने का मात्र हथकंडा है |
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Comments

  1. किसान जब तक खुद को बाजार से नहीं जोड़ेगा चस्का भला नहीं होगा

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  2. सबसे आसान राजनीति किसान राजनीति ही लगती है जिसमें नया कुछ नहीं रहता

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