voter- jindabad
From Amar Ujala |
अबकी चुनाव में मतदाता अपने आगे-पीछे खड़े व्यक्ति से यह नहीं जानना चाहता की वह किसे वोट दे रहा है और न ही अपने विचार किसी पर थोपने की कोशिश कर रहा है. यह हमारे लोकतंत्र के परिपक्व होने की निशानी है. जहाँ हम असहमति को भी जगह देने को तैयार हो रहे हैं.
आम आदमी आज भी अपने रोज़मर्रा की ज़रूरते मुश्किल से पूरी कर पा रहा है, इसके बाद भी वह मतदान प्रक्रिया में सर्वाधिक भागीदारी कर रहा है. जबकि शहरी और शिक्षित वर्ग जो व्यवस्था का सबसे ज्यादा रोना रोता है. घर से बहार निकलने को तैयार नहीं है. वह अब भी अपने को फ़िक्र करने तक सीमित किए है. जबकि इस अव्यवस्था का जिम्मेदार और फायदा उठाने वाला यही शहरी,शिक्षित,समझदार,नौकरीपेशा, दलाली,ठेकेदारी,नेतागीरी करने वाला यही वर्ग है और सबसे ज्यादा असंतुष्ट भी यही लोग हैं. फ़िलहाल ६०% तक की ईमानदार वोटिंग अपने लोकतंत्र के लिए बुरा नहीं है. साथ ही हम अपने लोगों के जागरूक होने के शुरूआती लक्षणों की सराहना कर सकते हैं. इसका श्रेय निःसंदेह निर्वाचन आयोग को जाता है,साथ ही मीडिया ने शानदार भूमिका निभाई है जिसके लिए ढेरों बधाइयाँ. इस चुनाव में किसी भी महिला को अकले किसी चुनाव केंद्र पर जाने में किसी प्रकार का भय नहीं लगा. सब ने यही कहा - पहली बार इतना शांत और सुरक्षित मतदान हुआ. वैसे चुनाव का परिणाम कुछ भी आए, विजेता चुनाव आयोग और मतदाता ही होंगे.
इन चुनावों में उम्मीदवार को खारिज करने की नई शुरुआत हुई और लोगों ने पहली बार अपने इस अधिकार का प्रयोग किया. हलाकि यह संख्या काफी कम है. पर यह हमारे न और दलों के नाकाम होने का प्रतीक है,यह उसी का प्रतीकात्मक विरोध है. अब ई.वी. एम. में "कोई नहीं का" का विकल्प देना होगा और यह भी प्राविधान करना पड़ेगा कि यदि राइट टु रिजेक्ट को अधिक मत मिल जाते हैं तो उस जगह चुनाव में शामिल सभी प्रत्याशियों को कम से कम छ: वर्ष के लिए हर प्रकार का चुनाव लड़ने और संवैधानिक पदों पर बने रहने के अयोग्य ठहरा दिया जाय और नए प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने का मौका दिया जाय.साथ ही जमानत जब्त होने पर प्रत्याशियों से उन पर हुए समस्त सरकारी खर्चे को वसूला जाए.
वैसे इस जागरूकता और अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों के प्रति संवेदनशील होने का कुछ श्रेय हमें अन्ना आन्दोलन और टीम अन्ना को भी देना चाहिए. सच तो यह है कि लोकतंत्र कि ताकत विरोध और असहमति को जगह देकर ही हासिल किया जा सकता है. अच्छा बनने और बनाने के लिए कोई अंतिम या एक मात्र रास्ता नहीं हो सकता, यह निरंतर वक़्त के साथ परिष्कृत करते और होते रहने कि सतत प्रक्रिया है जिसके लिए हमें अपने दिलो-दिमाग को हर पूर्वाग्रह और दुराग्रह से मुक्त रखना होगा.
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