Happy New Year | फिर नया वर्ष?


लोकपाल पर संसद में ज़ोरदार, हंगामेदार या हम कहें मनोरंजक बहस हुई. जिसमे विपक्ष ने सरकार कि शानदार घेराबंदी की और लम्बी कवायद के बाद भी देश को कुछ नहीं हासिल हुआ. सरकार और विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप के नए तरीके खोज़ते रहे, लोकपाल के इंतजार में एक साल और बीत गया. मेरी गलती नहीं है का दर्शन फिर से मंडित किया जाता रहा. संसद में लोकपाल सत्र, सूत्रधार के हिसाब से ही चला, न कम, न ज्यादा. लालूजी की आरजेडी ने कामेडी सर्कस को पूरी तरह चरितार्थ किया वह भी अपने विशेषाअधिकारों का पूरा उपयोग करते हुए संसद में खूब तालियाँ बटोरी.... 
                                                                     हमारी जानता को हर वक़्त मनोरंजन चाहिए, लोगों को अब भी यही लगता है कि पानी अभी सर से ऊपर नहीं हुआ और उनकी साँस तो अभी ठीक-ठाक चल ही रही है तो ऐसे में उन्हें अन्ना जैसों के साथ परेशानी उठानी कि क्या ज़रुरत है.
                                                                              मीडिया अपना फोकस जल्दी-जल्दी बदल रहा है. खबर को मनोरंजन में बदलने कि होड़ मची है, किसने क्या,क्यों,कैसे, कहा पर कम से कम एक घंटे कि बहस आराम से हो जाती है.वैसे चुनावी विज्ञापन के लिए सारे चैनलों और अख़बारों ने कमर कस ली है.
                     हमारे प्रधान मंत्री अब भी अपनी शालीनता और विनम्रता को बनाए हुए हैं और अपनी बेचारगी पर संसद में भी वह थोडा बहुत मुस्करा लेते हैं. उन्होंने भ्रष्टाचार से लड़ने का फिर से वादा किया है. सारी आवाजें और अंगुलियाँ नेताओं कि तरफ उठ रही हैं, हमारे नेता भी जानता का ध्यान बंटाने में माहिर हैं. दिग्विजय और लालू जैसी मिसाइलें हर वक़्त हमले में लगी हैं. हमारे ऐड गुरु नए नारे रच रहें हैं, अब प्रबंधन संस्थाओं कि भूमिका काफी बढ़ गयी है. तोड़-फोड़ से लेकर पत्थरबाज़ी तक के लिए सस्ते से सस्ते संगठन का जुगाढ़ कर सकते हैं.
               इस सारे शोर-शराबे के बाद भी सरकारी कर्मचारी अपनी मलाई कटाने में चुपचाप काट रहा है. मेरा नेता चोर है का नारा, मेरा कमिश्नर, डीएम, एसडीएम.... चोर है तक नहीं पहुँच पाया. लबकी भ्रष्टाचार के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार यही पढ़ा-लिखा, प्रतियोगी परीक्षा से चुनकर आने वाला प्रशासनिक अधिकारी ही है जो सबके लिए सारे रस्ते बनाता है और पूरी उम्र व्यवस्थित ढंग से भ्रष्टाचार में लिप्त रहता है. यह बात भी सच है कि सारे अफसर, नेता भ्रष्ट नहीं है. पर इनकी संख्या कितनी है ? भ्रष्टाचार का कारण कानूनों का कम या कमज़ोर होना नहीं है बल्कि यह पारदर्शिता और ज़वाबदेही कि कमी के कारण है. वैसे भी भ्रष्टाचार नैतिकता कि समस्या है, कानून कि नहीं!.
                                          इस नैतिकता का संकट हम संसद में बहस के दौरान देख और महसूस कर सकते थे. जहाँ हमारे सांसद अन्ना और लोकपाल के विरोध पर मेजें थपथपाते और ठहाके लगा रहे थे और संसद के अधिकार और गरिमा कि व्याख्या कर रहे थे, जबकी अन्ना जैसे लोग भी इसी गरिमा कि ही बात कर रहें कि आप काम करिए आप को जनता ने संसद में इसी लिए भेजा है न  कि हड़ताल और शोर शराबा मचाने के लिए. सबसे पहले आपको अपने आचरण को ठीक करना होगा और सांसद जब तथ्यों और तर्कों के साथ अपनी बात रखते हैं तभी अच्छे लगते हैं न कि ....
                              इस तरह के आन्दोलन और आवाज़ हमारे संसद और संविधान कि नहीं बल्कि यह सांसदों कि असफलता है कि आप को वक़्त के साथ संसदीय गरिमा को ऊपर नहीं उठा सके और आज समाज का आदर्श हमारा कोई नेता नहीं है. आम लोगों में "नेता" शब्द एक गाली जैसा हो गया है. ऐसे में लोकपाल पर संसद में पार्टी लाइन से हटकर अगर वोटिंग कराइ जाए तो क्या यह दहाई के अंक में पहुँच पाएगा ? संभव नहीं लगता ?
              खैर इन सबके बाद भी हमारे प्रधान मंत्री कि कोशिश जारी है और हमें उनकी नेक नियति पर पूरा भरोसा होना चाहिए ... ऐसे ही अगला चुनाव भी आ जाएगा .. ममता,माया, नए समीकरणों के लिए तैयार हैं. प्रधन मंत्री अपनी विनम्रता, शालीनता को बनाए हुए अपना कम चुपचाप कर रहें हैं....नए साल कि ढेरों शुभकामनाएँ ....     
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