हर-हर महादेव | Har Har Mahadev
हर हर महादेव
जिस समय भारत में इस्लाम प्रचार चरम पर था ।हिन्दू भयाक्रांत था उसी समय समाज सुधारक और आचार्य रामानंद (1299-1410) का दक्षिण भारत में उदय हुआ, जिनके धार्मिक आन्दोलन का प्रभाव पूरे भारत पर पडा । आचार्य रामानंद ने धर्म समन्वय का अपना नया अभियान चलाया और उसके अन्तर्गत सभी धर्मों और जातियों को समेटने की कोशिश की धर्म के उद्दात पक्ष को जनता के समक्ष रखा ।उन्होंने जहाँ हिन्दूओं के कर्मकांड तथा पुजारीवाद और पुरोहित वाद का विरोध किया वही इस्लाम की संकीर्णता की भी आलोचना की ।कर्मकांड पद्धति को दूषित घोषित किया और व्यवस्था दी कि वैदिक परम्पराओं को अपनाना युग के अनुरूप नहीं है ।उनके इस आन्दोलन से हिन्दू और मुसलमान दोनों का सामान्य जनमानस बहुत प्रभावित हुआ ।विद्वानों का मानना है कि बादशाह अकबर का दीन ए इलाही भी इन्हीं के विचारों से प्रभावित था ।
उत्तर भारत में रामानन्द जी की मूल विचारधारा को आगे बढाने में प्रमुख रहे हैं - अनन्तानन्द, कबीर,दादू,गुरु नानक , सुखानन्द,पीपा,भवानन्द, रैदास, धन्ना, सुरसरी, सेना, सदना ,मीरा बाई आदि थे। उनके शिष्यों मे हिन्दू और मुसलमान दोनों शामिल थे । इनका मूल मंत्र था :
"जाति पाति पूछे नहि कोई :हरि को भजे सो हरि का होई।"
इसी के समानांतर एक और विचारधारा चली जो वेद, पुराण और मनुस्मृति की समर्थक थी साथ ही रामानंद जी से प्रभावित भी थी ।इनका विचार था कि जाति पाति तो ईश्वर की रचना है और प्रारब्ध यानि पूर्व जन्म के कर्मों का फल है । इसलिए जाति पाति का विरोध उचित नहीं है और उसे समाज में सम्मान मिलने से ही समाज का कल्याण है । इस धारा के प्रमुख वाहक थे -संत तुलसीदास, संत सूरदास आदि।इनका मूल मंत्र था :
"कलयुग केवल नाम अधारा"
नाम कीर्तन से ही सारे समाज का कल्याण है ।
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तुलसी बाबा और हनुमान चालीसा के संदर्भ में भी पढ़िये ********************************
( 'हनुमान चालीसा' की रचना की पृष्ठभूमि मे तुलसी
की जेल यात्रा )
.............".डा . अशोक शुक्ल "
*हनुमान चालीसा कब लिखा गया क्या आप जानते हैं। नहीं तो जानिये, शायद कुछ ही लोगों को यह पता होगा?*
*पवनपुत्र हनुमान जी की आराधना तो सभी लोग करते हैं और हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं, पर यह कब लिखा गया, इसकी उत्पत्ति कहाँ और कैसे हुई यह जानकारी बहुत ही कम लोगों को होगी।*
*बात 1600 ईस्वी की है यह काल अकबर और तुलसीदास जी के समय का काल था।*
*एक बार तुलसीदास जी मथुरा जा रहे थे, रात होने से पहले उन्होंने अपना पड़ाव आगरा में डाला, लोगों को पता लगा कि तुलसीदास जी आगरा में पधारे हैं। यह सुन कर उनके दर्शनों के लिए लोगों का ताँता लग गया। जब यह बात बादशाह अकबर को पता लगी तो उन्होंने बीरबल से पूछा कि यह तुलसीदास कौन हैं।*
*तब बीरबल ने बताया, इन्होंने ही रामचरित मानस का अनुवाद किया है, यह रामभक्त तुलसीदास जी है, मैं भी इनके दर्शन करके आया हूँ। अकबर ने भी उनके दर्शन की इच्छा व्यक्त की और कहा मैं भी उनके दर्शन करना चाहता हूँ।*
*बादशाह अकबर ने अपने सिपाहियों की एक टुकड़ी को तुलसीदास जी के पास भेजा और तुलसीदास जी को बादशाह का पैगाम सुनाया कि आप लालकिले में हाजिर हों। यह पैगाम सुन कर तुलसीदास जी ने कहा कि मैं भगवान श्रीराम का भक्त हूँ, मुझे बादशाह और लालकिले से मुझे क्या लेना-देना और लालकिले जाने के लिए साफ मना कर दिया। जब यह बात बादशाह अकबर तक पहुँची तो बहुत बुरी लगी और बादशाह अकबर गुस्से में लालताल हो गया, और उन्होंने तुलसीदास जी को जंज़ीरों से जकड़बा कर लाल किला लाने का आदेश दिया। जब तुलसीदास जी जंजीरों से जकड़े लाल किला पहुंचे तो अकबर ने कहा की आप कोई करिश्माई व्यक्ति लगते हो, कोई करिश्मा करके दिखाओ। तुलसी दास ने कहा मैं तो सिर्फ भगवान श्रीराम जी का भक्त हूँ कोई जादूगर नही हूँ जो आपको कोई करिश्मा दिखा सकूँ। अकबर यह सुन कर आगबबूला हो गया और आदेश दिया की इनको जंजीरों से जकड़ कर काल कोठरी में डाल दिया जाये।*
*दूसरे दिन इसी आगरा के लालकिले पर लाखों बंदरों ने एक साथ हमला बोल दिया, पूरा किला तहस नहस कर डाला। लालकिले में त्राहि-त्राहि मच गई, तब अकबर ने बीरबल को बुला कर पूछा कि बीरबल यह क्या हो रहा है, तब बीरबल ने कहा हुज़ूर आप करिश्मा देखना चाहते थे तो देखिये। अकबर ने तुरंत तुलसीदास जी को कल कोठरी से निकलवाया। और जंजीरे खोल दी गई। तुलसीदास जी ने बीरबल से कहा मुझे बिना अपराध के सजा मिली है।*
*मैंने काल कोठरी में भगवान श्रीराम और हनुमान जी का स्मरण किया, मैं रोता जा रहा था। और रोते-रोते मेरे हाथ अपने आप कुछ लिख रहे थे। यह 40 चौपाई, हनुमान जी की प्रेरणा से लिखी गई हैं। कारागार से छूटने के बाद तुलसीदास जी ने कहा जैसे हनुमान जी ने मुझे कारागार के कष्टों से छुड़वाकर मेरी सहायता की है उसी तरह जो भी व्यक्ति कष्ट में या संकट में होगा और इसका पाठ करेगा, उसके कष्ट और सारे संकट दूर होंगे। इसको हनुमान चालीसा के नाम से जाना जायेगा।*
*अकबर बहुत लज्जित हुए और तुलसीदास जी से माफ़ी मांगी और पूरी इज़्ज़त और पूरी हिफाजत, लाव-लश्कर से मथुरा भिजवाया।*
*आज हनुमान चालीसा का पाठ सभी लोग कर रहे हैं। और हनुमान जी की कृपा उन सभी पर हो रही है। और सभी के संकट दूर हो रहे हैं। हनुमान जी को इसीलिए "संकट मोचन" भी कहा जाता है।*
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