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जब तक आप कथित, स्वघोषित हिंदू संगठनों, राजनीतिक दलों की आलोचना, मतलब बैंड बजाते रहेंगे, तब तक आप निष्पक्ष, उदार, प्रगतिशील, लोकतांत्रिक, संविधानवादी और पूरी तरह ईमानदार माने जाएंगे... लेकिन जैसे ही आप निष्पक्ष तरीके वाले, इन्हीं पैमानों पर अल्पसंख्यकों के संगठनों, राजनीतिक दलों, स्वघोषित समाजवादियों, उदारवादियों.. समझ रहे हैं न? 
     हलांकि ए लोग भी उतने ही आक्रामक और बाकी सबकुछ हैं, पर इनकी एक खूबी है, इनकी भाषा साहित्यिक और विरोध काफ़ी रचनात्मक होता है। कुल मिलाकर ए विरोध बहुत अच्छा करते हैं। एकदम सपनों वाली बातें, किसे अच्छी नहीं लगती मानवतावादी, पुनर्जागरण के हसीन ख्वाब.. वाह.. बेहतरीन कविता पाठ, सच में मजा आ जाता है।
   ऐसे शानदार विरोध का हिस्सा बनकर, समाजवाद एकदम अंदर तक उतर जाता है। एकदम वैसे ही जैसे मेरी जाति या मेरा धर्म खतरे वाली तकरीर होती है और तब डिजाइनर त्रिशूल नजर आता है, हाथों में तलवारें लहराने लगती है। एकदम मीडिया फ्रेंडली, सब कुछ कैमरे के सामने, हलांकि पकड़ने का ढंग देखकर हंसी आ ही आती है। इसके मंचन के बाद, अब टीवी चैनल और सोसल नेटवर्क के डरावने डायलॉग पूरे दिन, पांच मिनट का क्लिप अलग अलग बैकग्राउंड संगीत के साथ, डर का पूरा मजा लीजिए। 
     चलिए मान लेते हैं कि यहाँ तक भी सब ठीक है। पर दिक्कत तब आती है जब हमारे कथित समाजवादी, मावो, लेनिन या ची-गुवेरा को भारत में ढूंढ़ने लग जाते हैं जबकि इन लोगों अपने समाजों के लिए खुद का समाजवाद गढ़ा और हम लोग आज तक अपना समाजवाद नहीं ढूंढ पाए। 
    ऐसे ही उदारवादियों की उदारता को समझिए कि जैसे ही आप इनके विचारों की हल्की सी भी आलोचना करेंगे आप कट्टरपंथी.... ए.. वो.. और बहुत कुछ हो जाएंगे। जबकि एक ही व्यक्ति की भिन्न-भिन्न स्थितियों में आलोचना या फिर प्रशंसा हो सकती है। निष्पक्ष विमर्श में क्या किसी व्यक्ति का या फिर किसी व्यक्ति के बारे में कोई स्थाई धारणा हो सकती है?
      यदि किसी में ऐसी धारणा है तो वह सिर्फ दुराग्रह, पूर्वाग्रह या फिर वह भक्त की भक्ति होगी। आप स्वयं को कैसे अलग मानते हैं सोचकर देखिए...
©️rajhansraju
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आँधी आई जोर शोर से,

डालें टूटी हैं झकोर से।

उड़ा घोंसला अंडे फूटे,

किससे दुख की बात कहेगी!

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?


हमने खोला आलमारी को,

बुला रहे हैं बेचारी को।

पर वो चीं-चीं कर्राती है

घर में तो वो नहीं रहेगी!


घर में पेड़ कहाँ से लाएँ,

कैसे यह घोंसला बनाएँ!

कैसे फूटे अंडे जोड़े,

किससे यह सब बात कहेगी!

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?


- महादेवी वर्मा



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Comments

  1. shabdon ki behtareen kareegari hum sabke sath share karane ke lie shukriya
    इन शानदार शब्दों तक पहुंचना आसान नहीं होता क्योंकि ज़्यादातार इस ट्राफिक मे चीजें खो जाती हैं और बहुत सी अच्छी और सही बातें हम तक नहीं पहुँच पाती

    ReplyDelete

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