हमे सच बताएँ

अपना अपना सच 


नेताजी से सम्बंधित गोपनीय दस्तावेज़ो का सर्वजनिक किया जाना देर से उठाया गया एक अच्छा कदम है
। नेताजी कि मौत कैसेकब, हुई? या फिर नेताजी अपने ही देश में क्यों छुप कर रहे या फिर छुपाकर रखे गए? इसके पीछे अनेकों कहानियों को गढा‌ जाता रहा है। वैसे भी आम आदमी चमत्कारों में बहुत उम्मीद रखता है। सब कुछ अच्छा करने के लिए और बद्लाव लाने के लिए वह किसी मसीहा, हीरो या फिर भगवान की सदैव उम्मीद लगाए रहता है ऐसे में ऐसी गोपनियताएँ,तमाम कहनियों के लिए ढेंरों गुंज़ाइश छोड़ जाती हैं। फिर नेताजी के बारे मे पता लगाने के लिए कई आयोगों का गठन किया गया,पर उनका क्या परिणाम निकला आज़ तक किसी को पता नहीं चला। जब किसी को बताना हि नहीं था तो इन आयोगों पर पैसा क्यों बर्बाद किया गया? फिलहाल यह कम से कम एक शुरुआत तो है ही,वज़ह कुछ भी रही हो, राज़नीतिक कारणों से ही सही। अब सरकारों पर सच सामने लाने का दबाव बनेगा और हमारे राज़नीतिक दल और नेताओं को इतिहास में अपनी योजना के अनुसार दर्ज़ होने के अधिकार तो छिन ही जाएगा। जैसा कि तमाम लोग समय-समय पर सुझाव देते रहे है कि एक निश्चित समय बाद समस्त सरकारी दस्तावेज़ो को सार्वज़निक किया जाय इस तरह की गोपनियताएँ किसी के हित मे नहीं होती, खसतौर पर हमारे देश के लिए तो बिल्कुल भी नहीं जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर ढे‌र सारी लीपा-पोती की जाती है और नाहक ही हम किसी व्यक्ति को महान मानते रहते है जबकि उनके अच्छे बुरे कारनामों का लेखाजोखा सरकार ने लोगों के सामने आने ही नहीं देती। उनको न जाने कितने दरवाज़ों के अंदर बंद करके, उसके नफा-नुकसान का अंदाज़ा ही लगाती रहती है। 

     कम से कम अब हमें एक परिपक्व राष्ट्र की तरह व्यवहार करना चाहिए कि हम इतने सक्षम हो चुके हैं कि हम अपनी कमियों, नाकामियों को स्वीकार कर सकते हैं। देश से बढ़कर कोई नहीं होता, न कोई पार्टी और न ही कोई नेता। जैसा कि सब लोग जानते हैं कि हम 1962 की लडा‌ई चीन से हारे है यह सच्चाई है और आज़ भी उसके कारणों को आम लोग नहीं जानते और जो विद्यार्थियों और रक्षा विशेषज्ञों के अध्ययन के लिए उपलब्ध होना चहिए, वह पता नहीं किस इज़्ज़त को बचाने के लिए, उसकी सारी रिपोर्टों और कार्यवाहियों छुपा कर रखा गया है जबकि पूरी दुनिया को हमारी इस हार का पता है। ऐसा करके हम सिर्फ अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहते हैं कि हमको कोई यह न कहे कि हमने उस समय कौन-कौन सी गलतियाँ की थी।
         अतीत को स्वीकार करें और आगे बढे‌। वह अच्छा या बुरा था, यह धारणाओं में कैद होकर तो जाना नहीं जा सकता। फिर ब्रिटिश, हिंदू, मुस्लिम, सेक्युलर, राष्ट्रवादी व्याख्याकार सबके अपने-अपने चश्मे। दिक्कत की शुरूआत तब होती है, जब किसी खास चश्मे से ही देखने के लिए बाध्य किया जाता है और अपनी बात मनवाने के लिए लठैतों का इस्तेमल होने लगता है। जिसकी लाठी उसकी बात, उसकी किताब, उसका नाम, अरे नहीं! कुल मिलाकर वही उसकी भैंस  वाली ही बात है। हमें कुछ काम पढने-लिखने वालों के लिए छोड़ देना चाहिए कि वो तथ्यों का समझे उन पर शोध करें और हमारे सामने नयी जानकारी, नए ज्ञान को ले आएँ। वह हो सकता है कि हमारे स्थापित धारणाओं से थोडा‌ भिन्न हो तो क्या हम उसका तिरस्कार करेंगे या फिर उसे अपने अतीत का महज़ एक हिस्सा मानकर उसे स्वीकर कर लेंगे कि हमारा एक पक्ष यह भी था। दुनिया के तमाम शिक्षित और सभ्य देश ऐसा ही करते हैं। जर्मनी में हिटलरके बारे में कुछ भी नहीं छुपा है उसके हर पक्ष को जानने समझने की कोशिश की गयी। ढे‌रो किताबें लिखी गयी हैं और फिल्में बनायी गयी हैं। अब भी उसे हीरो मानने वाले लोग हैं। हलाँकि पूरी दुनिया में उसे विलेन ही माना ज़ाता है। तो इससे क्या फर्क पड‌ता है? हिटलर जर्मनी की सच्चाई है कि कैसे कोई सनक, या वर्चस्व बनाए रखने की इच्छा पूरी दुनिया का सत्यानाश कर सकती है।
      हम भारतीय अपने व्यवहार से अति पलायनवादी हैं हमने अपने चारों तरफ सच-झूठ का एक अज़ब आडम्बर रच रखा है जिससे हम टस से मस नहीं होना चाहते हैं और हमारी हर वक़्त यही कोशिश रहती है कि इसी धारणा में सबकुछ बना और बचा रहे। इसी वज़ह से हम तथ्यों,तर्कों की व्याख्या से बचते रहते हैं कि हमारा झूँठा आड़म्बर कहीं टूट ना जाए। उसी को बचाने की कोशिश करते रहते हैं।
जय हिंद

*************

(38)


********************** 

                        my Youtube channels 

**************
👇👇👇



**************************
my Bloggs
***************
👇👇👇👇👇


*************


**********



*************
to visit other pages





******
 🌹❤️🙏🙏🌹🌹

Comments

अवलोकन

ब्राह्मणवाद : Brahmnism

Ramcharitmanas

Swastika : स्वास्तिक

Message to Modi

अहं ब्रह्मास्मि

narrative war

Jagjeet Singh | श्रद्धांजली-गजल सम्राट को

Manusmriti

Women reservation bill

वाद की राजनीति