Shiv Lingam | Brahma Vushnu mahesh

 शिवलिंग 

शिवलिंग कोई साधारण (मूर्ती) नहीं है पूरा विज्ञान है!


शिवलिंग में विराजते हैं तीनों देव:-



सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है वह ब्रह्म है, दूसरा बीच का हिस्सा वह भगवान विष्णु का प्रतिरूप और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है वह देवा दी देव महादेव का प्रतीक है, शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है तथा अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला भाग माता पार्वती को समर्पित तथा प्रतीक के रूप में पूजनीय है... अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। अन्य मान्यता के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव और शक्ति, एक साथ में वास करते हैं।

शिवलिंग का अर्थ:-


शास्त्रों के अनुसार 'लिंगम' शब्द 'लिया' और 'गम्य' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ 'शुरुआत' व 'अंत' होता है। तमाम हिंदू धर्म के ग्रंथों में इस बात का वर्णन किया गया है कि शिव जी से ही ब्रह्मांड का प्राकट्य हुआ है और एक दिन सब उन्हीं में ही मिल जाएगा।


शिवलिंग में विराजते त्रिदेव:-


हम में लगभग लोग यही जानते हैं कि शिवलिंग में शिव जी का वास है। परंतु क्या आप जानते हैं इसमें तीनों देवताओं का वास है। कहा जाता है शिवलिंग को तीन भागों में बांटा जा सकता है। सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है, दूसरा बीच का हिस्सा और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है।


निचला हिस्सा ब्रह्मा जी (सृष्टि के रचयिता), मध्य भाग विष्णु (सृष्टि के पालनहार) और ऊपरी भाग भगवान शिव (सृष्टि के विनाशक)। अर्थात शिवलिंग के जरिए ही त्रिदेव की आराधना हो जाती है। तो वहीं अन्य मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग का निचला हिस्सा स्त्री और ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। अर्थता इसमें शिव-शक्ति, एक साथ वास करते हैं।


शिवलिंग की अंडाकार संरचना:-


कहा जाता है शिवलिंग के अंडाकार के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक, दोनों कारण है। अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो शिव ब्रह्मांड के निर्माण की जड़ हैं। अर्थात शिव ही वो बीज हैं, जिससे पूरा संसार उपजा है। इसलिए कहा जाता है यही कारण है कि शिवलिंग का आकार अंडे जैसा है। वहीं अगर वैज्ञानिक दृष्टि से बात करें तो 'बिग बैंग थ्योरी' कहती है कि ब्रह्मांड का निमार्ण अंडे जैसे छोटे कण से हुआ है। शिवलिंग के आकार को इसी अंडे के साथ जोड़कर देखा जाता है।



ॐ नम:शिवाय: 


#साभार

अखंड भारत सनातन संस्कृति

पंडित अनुप चौबे


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भगवान शिव एक दिन गँवार का वेष बनाकर विद्यापति के घर आ गये। विद्यापति को शिव जी ने अपना नाम ' उगना ' बताया। विद्यापति की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी अतः उन्होंने उगना को नौकरी पर रखने से मना कर दिया। लेकिन शिव जी मानने वाले कहां थे ! सिर्फ दो वक्त के भोजन पर नौकरी करने के लिए तैयार हो गये।

इस पर विद्यापति की पत्नी सुधिरा ने विद्यापति से उगना को नौकरी पर रखने के लिए कहा। पत्नी की बात मानकर विद्यापति ने उगना को नौकरी पर रख लिया। एक दिन उगना विद्यापति के साथ राजा के दरबार में जा रहे थे। तेज गर्मी की वजह से विद्यापति का गला सूखने लगा। लेकिन आस-पास जल का कोई स्रोत नहीं था। विद्यापति ने उगना से कहा कि कहीं से जल का प्रबंध करो अन्यथा मैं प्यासा ही मर जाऊंगा।

भगवान शिव कुछ दूर जाकर अपनी जटा खोलकर एक लोटा गँगाजल भर लाए। विद्यापति ने जब जल पिया तो उन्हें गँगाजल का स्वाद लगा और वह आश्चर्य चकित हो उठे कि इस विटप निर्जन वन में जहाँ कहीं जल का स्रोत तक नहीं दिखता यह जल कहाँ से आया। वह भी ऐसा जल जिसका स्वाद गंगा जल के जैसा है। कवि विद्यापति को उगना पर संदेह हो गया कि यह कोई सामान्य व्यक्ति नहीं बल्कि स्वयं भगवान शिव हैं। उगना से उसका वास्तविक परिचय जानने के लिए जिद करने लगे।

जब विद्यापति ने उगना को शिव कहकर उनके चरण पकड़ लिए तब उगना को अपने वास्तविक स्वरूप में आना पड़ा। उगना के स्थान पर स्वयं भगवान शिव प्रकट हो गये। भगवान शिव ने विद्यापति से कहा कि मैं तुम्हारे साथ उगना बनकर रहना चाहता हूं लेकिन इस बात को कभी किसी से मेरा वास्तविक परिचय मत बताना।

विद्यापति को बिना मांगे संसार के ईश्वरीय अनुकंपा का सानिध्य मिल चुका था। इन्होंने भगवान शिव की शर्त को मान लिया। लेकिन एक दिन विद्यापति की पत्नी सुधिरा ने उगना को कोई काम दिया। उगना उस काम को ठीक से नहीं समझा और गलती कर बैठा। सुधिरा इससे नाराज हो गयी और चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर लगी शिव जी की पिटाई करने। विद्यापति ने जब यह दृश्य देखा तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, "यह उगना साक्षात भगवान शिव हैं, इन्हें जलती लकड़ी से मार रही हो।'

विद्यापति के मुँह से यह शब्द निकलते ही शिव वहाँ से अर्न्तध्यान हो गये। इसके बाद तो विद्यापति पागलों की भाँति 'उगना उगना' कहते हुए वनों में, खेतों में हर जगह उगना बने शिव को ढूँढने लगे। भक्त की ऐसी दशा देखकर शिव को दया आ गयी। भगवान शिव विद्यापति के सामने प्रकट हो गये और कहा कि अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। 'उगना' रूप में मैं जो तुम्हारे साथ रहा, उसके प्रतीक चिन्ह के रूप में अब मैं शिव लिंग के रूप में विराजमान रहूँगा।

इसके बाद शिव अपने लोक लौट गये और उस स्थान पर शिव लिंग प्रकट हो गया। उगना महादेव का प्रसिद्घ मंदिर वर्तमान में बिहार के मधुबनी जिले में पंडौल प्रखंड के भवानीपुर गाँव में स्थित है।

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 Sabhaar...!!!

शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगीं ।
शबरी की उम्र "दस वर्ष" थी । वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगीं ।
महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे । शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो ।"
अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- "कब आएंगे..?"
महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे । वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे । महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया ।
 आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए ।  ये उलट कैसे हुआ । गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ ???
महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका ।
महर्षि मतंग बोले- 
पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ ।
अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ ।
उनका कौशल्या से विवाह होगा । फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी । 
फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा । फिर प्रतीक्षा..
फिर उनका विवाह कैकई से होगा । फिर प्रतीक्षा.. 
फिर वो "जन्म" लेंगे, फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा । फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा । तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे । तुम उन्हें कहना आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये । उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा । और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे ।
शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई । "अबोध शबरी" इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई ।
वह फिर अधीर होकर पूछने लगी- "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव ???"
महर्षि मतंग बोले- "वे ईश्वर हैं, अवश्य ही आएंगे । यह भावी निश्चित है । लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते हैं । लेकिन आएंगे "अवश्य"...!
जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थेक्ष। इसलिए प्रतीक्षा करना । वे कभी भी आ सकते हैं । तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे । शायद यही मेरे तप का फल है ।"
शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गईं । उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थीं । वह जानती थीं समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें हैं । 
हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती ।
कभी भी आ सकतें हैं ।
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा । शबरी बूढ़ी हो गई । लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही ।
और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े । शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया । आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी ।
गुरु का कथन सत्य हुआ । भगवान उसके घर आ गए । शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया ।
ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो । जय हो । जय हो.। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-
"कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?"
राम मुस्कुराए- "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?"
"जानते हो राम ! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा ।
राम ने कहा- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है ।”
"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है । पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’ ।
”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है । यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है । दिन रात उसकी आराधना करता है...!” (वानरी भाव)
पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया । ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी, और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है । मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...।" (मार्जारी भाव)
राम मुस्कुराकर रह गए..!!
भीलनी ने पुनः कहा- "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं !" तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी ।  यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”
राम गम्भीर हुए और कहा-
भ्रम में न पड़ो मां ! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”
रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है ।
राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है माँ, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था ।” 
"जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है ।"
राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि "शासन/प्रशासन और सत्ता" जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है ।”
(अंत्योदय)
राम वन में इसलिए आया है, ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं । राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ !
माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं ।
राम ने फिर कहा-
राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए ।”
"राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है ।”
"राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है ।”
"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है ।”
"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए ।” 
और
"राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं ।”
शबरी की आँखों में जल भर आया था ।
उसने बात बदलकर कहा-  "बेर खाओगे राम..?”
राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं माँ !"
शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये ।
राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- 
"बेर मीठे हैं न प्रभु..?” 
"यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ माँ ! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है ।”
शबरी मुस्कुराईं, बोली-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम !"
मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन ।
जय श्री राम🙏🏻🪷🕉️🙏🏻








ब्राहमणो ने समाज को तोडा नही अपितु जोडा है

ब्राहमण ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खडे हरिजन को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि हरिजन स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हेपर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगे।

इस तरह सबसे पहले हरिजन को जोडा गया .....

★ धोबन के द्वारा दिये गये जल से से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा...

★ कुम्हार द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोड़ा...

★ मुसहर जाति जो वृक्ष के पत्तो से पत्तल दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोडा कि इन्ही के बनाए गये पत्तल दोनीयो से देवताओ के पुजन सम्पन्न होगे...

★ कहार जो जल भरते थे यह कहते हुए थोड़ा कि इन्ही के द्वारा दिये गये जल से देवताओ के पुजन होगें...

★ बिश्वकर्मा जो लकडी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन चौकी पर ही बैठ कर बर बधू देवताओ का पुजन करेंगे ...

★ फिर बुनकर उन्हे जोडते हुये कहा कि इनके द्वारा सिले गये वस्त्रो जोड़े जामे को ही पहन कर विवाह सम्पन्न होगें...

★ फिर कारीगर   की स्त्री को यह कहते हुये जोडा कि इनके द्वारा पहनायी गयी चुणिया ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी...

★ धारीकार जो डाल और मौरी जो दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है को यह कहते हुये जोड़ा की इनके द्वारा बनाये गये उपहारो के बिना देवताओ का आशीर्बाद नही मिल सकता

इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर की महिलाये मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर बिदा करती थी...,

ब्राहमणो का कहॉ दोष है।

जो ब्राहमणो के अपमान का कारण बन गया इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राहमण नाई से पुछता था कि क्या सभी वर्गो की उपस्थिति हो गयी है?

★ नाई के हॉ कहने के बाद ही ब्राहमण मंगल पाठ प्रारम्भ करता था।

ब्राहमणो द्वारा जोड़ने की क्रिया छोड़ा आप लोगो ने और दोष ब्राहमणो पर लगा दिया।

ब्राम्हण मतलब वो पण्डे नही जो मंदिर को दुकान बनाते हैं,,,,
ॐ*



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शशि कान्त शर्मा 
एक  महिला हैं, वो जयपुर में एक PG (पेइंग गेस्ट) रखती हैं। उनका अपना पुश्तैनी घर है, उसमें बड़े बड़े 10-12 कमरे हैं। उन्हीं कमरों में हर एक में 3 bed लगा रखे हैं। उनके PG में भोजन भी मिलता है। खाना खिलाने की शौकीन हैं। बड़े मन से बनाती खिलाती हैं।
उनके यहां इतना शानदार भोजन मिलता है कि अच्छे से अच्छा Chef नही बना सकता। आपकी माँ भी इतने प्यार से नही खिलाएगी जितना वो खिलाती हैं। 

उनके PG में ज़्यादातर नौकरी पेशा लोग और छात्र रहते हैं। सुबह Breakfast और रात का भोजन तो सब लोग करते ही हैं, जिसे आवश्यकता हो उसे दोपहर का भोजन pack करके भी देती हैं पर उनके यहां एक बड़ा अजीबोगरीब नियम है, हर महीने में सिर्फ 28 दिन ही भोजन पकेगा, शेष 2 या 3 दिन होटल में खाओ, ये भी नही कि PG की रसोई में बना लो। रसोई सिर्फ 28 दिन खुलेगी। शेष 2 या 3 दिन Kitchen Locked रहेगी। 
हर महीने के आखिरी तीन दिन Mess बंद। Hotel में खाओ, चाय भी बाहर जा के पी के आओ।

मैंने उनसे पूछा कि ये क्यों? ये क्या अजीबोगरीब नियम है। आपकी kitchen सिर्फ 28 दिन ही क्यों चलती है ?
बोली, हमारा Rule है। हम भोजन के पैसे ही 28 दिन के लेते हैं। इसलिये kitchen सिर्फ 28 दिन चलती है।
मैंने कहा ये क्या अजीबोगरीब नियम है? और ये नियम भी कोई भगवान का बनाया तो है नही आखिर आदमी का बनाया ही तो है बदल दीजिये इस नियम को।

उन्होंने कहा No, Rule is Rule ...
खैर साहब अब नियम है तो है। उनसे अक्सर मुलाक़ात होती थी। एक दिन मैंने बस यूं ही फिर छेड़ दिया उनको, उस 28 दिन वाले अजीबोगरीब नियम पे। उस दिन वो खुल गईं बोलीं, तुम नही समझोगे! 

शुरू में ये नियम नही था। मैं इसी तरह, इतने ही प्यार से बनाती खिलाती थी। पर इनकी शिकायतें खत्म ही न होती थीं कभी ये कमी, कभी वो कमी! चिर असंतुष्ट always Criticizing... सो तंग आके ये 28 दिन वाला नियम बना दिया। 28 दिन प्यार से खिलाओ और बाकी 2 - 3 दिन बोल दो कि जाओ, बाहर खाओ। उन 3 दिन में नानी याद आ जाती है, आटे-दाल का भाव पता चल जाता है। ये पता चल जाता है कि बाहर कितना महंगा और कितना घटिया खाना मिलता है। दो घूंट चाय भी 15 - 20 रु की मिलती है।

मेरी Value ही उनको इन 3 दिन में पता चलती है सो बाकी 28 दिन बहुत कायदे में रहते हैं। अत्यधिक सुख सुविधा की आदत व्यक्ति को असंतुष्ट और आलसी बना देती है।
 
ऐसे ही कुछ हाल देश में ही रहने वाले कुछ रहवासियों के भी हैं, जो देश की हर परिस्थिति में हमेशा कुछ न कुछ कमियाँ ही देखते हैं। ऐसे लोगों के अनुसार देश में कुछ भी सकारात्मक नहीं हुआ, न ही हो रहा हैं और न ही होगा, ऐसे लोगो को कुछ दिन के लिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान या श्रीलंका गुजारने चाहिए, ताकि इनकी बुद्धि सही हो सके....


तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा कह रहे हैं, "मैं आतंकी चीन के कब्जे में अपनी मातृभूमि में मरने के स्थान पर भारत में मरना पसन्द करूंगा।" यह बयान उस समय आया है जब भारत में बैठे चीन समर्थक भारत की सरकार को हिटलरशाही और जाने क्या क्या बताते हैं, पर भारत में मिलने वाली स्वतन्त्रता का मूल्य चीन की गुलामी में जीने को विवश तिब्बती और उसके बौद्ध धर्मगुरु खूब जानते हैं।
    चीन से स्वतंत्र होने की लड़ाई लड़ रहे तिब्बतियों के बीच का सबसे बड़ा नाम है दलाई लामा! दलाई लामा तिब्बती समुदाय के सर्वाधिक मान्य धर्मगुरु हैं, ठीक वैसे ही जैसे भारत के बहुसंख्यकों में सर्वाधिक मान्य धर्मगुरु शंकराचार्य हैं। दलाई लामा धर्मगुरु होने के साथ साथ तिब्बतियों के नेता भी हैं। वे तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए लगातार लड़ते रहे हैं। 1959 में तिब्बत पर चीन के अनैतिक कब्जे के बाद से भारत में निर्वासित जीवन जी रहे दलाई लामा अब बृद्ध हो चुके हैं, तो स्पष्ट है कि उस पद पर कोई और लामा आसीन होगा। चीन चाहता है कि अब उस पद पर कोई चीन समर्थक व्यक्ति आसीन हो।
     धर्मिक गद्दी पर कौन आसीन हो, यह सत्ता का विषय नहीं है, पर समय समय पर सरकारें धार्मिक विषयों पर अनाधिकार हस्तक्षेप करती रही हैं। भारत में भी शंकराचार्य की मृत्यु के बाद नए शंकराचार्य के चयन पर उपजा विवाद लगभग वैसा ही है। किंतु यदि चीन अपने किसी व्यक्ति को दलाई लामा बनाने में सफल हो जाता है, तो तिब्बत की लड़ाई ही समाप्त हो जाएगी। यह भी तय है कि चीन ऐसा करने में कोई कसर छोड़ेगा नहीं।
     ऐसे समय में यदि दलाई लामा भारत को दुनिया का सबसे सुन्दर और स्वतंत्र स्थान बता रहे हैं तो उनके स्वर का मूल्य बहुत अधिक है। विपक्ष के तमाम अनैतिक आक्षेपों के बाद भी भारत में सर्वजन को जो स्वतन्त्रता मिली है वह किसी और देश में सम्भव नहीं। हम।अफगानिस्तान की दशा देख ही रहे हैं। पाकिस्तान, बंग्लादेस, श्रीलंका आदि देशों में मानवता किस पर कुचली जाती है, यह भी दुनिया जानती है। चीन में तो घोषित रूप से तानाशाही स्थापित हो चुकी है। इराक, सीरिया, तुर्की, सऊदी आदि को तो जाने ही दें, पर स्वयं को आधुनिक बताने वाले ईरान में बुरका न पहनने पर स्त्रियों को मार दिया जाना बताता है कि वहाँ कितनी और किस प्रकार की स्वतंत्रता है। ऐसे में भारत की स्वतंत्रता अपने आप में अनमोल है, अद्वितीय है।
     असल में मनुष्य स्वतः मिल गयी स्वतन्त्रता का मूल्य नहीं समझता। स्वतन्त्रता का मूल्य वे समझते हैं जिन्होंने परतंत्रता भोगी हो। सहज ही प्राप्त हो जाने वाली वस्तु का हम सम्मान ही नहीं करते। अपनी स्वतंत्रता का जितना अपमान हम करते हैं उतना कोई नहीं करता...
     तिब्बत के भाग्य का ऊँट किस करवट बैठता है, यह देखना मजेदार होगा। समय उन्हें शक्ति दे, लड़ने का साहस दे, स्वतन्त्रता दे... भारत के पड़ोस में एक गुलाम देश का होना भारत के लिए भी अपमानजनक है।

साभार: सर्वेश तिवारी श्रीमुख भैया
गोपालगंज, बिहार।






अभिव्यक्ति के ख़तरे

1964 में जब मुक्तिबोध ने लिखा था कि 'अब अभिव्यक्ति के ख़तरे उठाने ही होंगे/ तोड़ने ही होंगे/ मठ और गढ़ सब।' शायद तब इतने ख़तरे नहीं थे। लेकिन बीस साल बीतते-बीतते  ये ख़तरे दुनिया भर में बढ़ने लगे। और अब लगभग पचास साल बाद वे चरम पर हैं। ये ख़तरे किसी एक ओर से नहीं आये। 

अभिव्यक्ति का सबसे प्रमुख माध्यम साहित्य है। इसलिए हर ओर से साहित्य पर सबसे ज़्यादा ख़तरे आये। ये ख़तरे जिन जगहों से सर्वाधिक आये, वे धार्मिक संस्थाएँ थीं। आज धार्मिक संस्थानों पर आमफ़हम टिप्पणी करने की ज़रूरत नहीं है। कल न्यू यॉर्क में भारतीय मूल के अँग्रेज़ी लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला हुआ है। इसकी सूचना के साथ मंच पर घायल पड़े  रुश्दी और हमलावर को दबोचते पुलिसकर्मियों का चित्र हमने दिया था। अभी इसी सिलसिले में अभिव्यक्ति के ख़तरे की बात करने का औचित्य है। 

रुश्दी की पुस्तक 'सेटेनिक वर्सेज़' आयी (1988) तो दुनिया भर के इस्लामिक बुनियादपरस्त बौखला गये। अपनी कट्टरता के लिए सुन्नी बदनाम रहे हैं लेकिन रुश्दी की पुस्तक के ख़िलाफ़ शिया ईरान के धर्मध्वजी अयातुल्ला खुमैनी ने 1989 में मौत का फ़तवा जारी कर दिया। जिस हादी मटर नामके हमलावर ने कल न्यू यॉर्क में  व्याख्यान से ठीक पहले  रुश्दी पर हमला किया, वह ईरान समर्थक है, उसके पास अयातुल्ला खोमैनी की तस्वीर निकली है। 

मेरे कुछ 'क्रांतिकारी' मित्र अरबों-तुर्कों की कट्टरता पर टिप्पणी करने के नाते मुझे संघी इतिहास-बोध का वाहक बतलाते हैं, वे कभी इस्लामी कट्टरता के ख़िलाफ़ बोलते नहीं पाये जाते। उनकी क्रांति अत्यंत सुविधाजनक है। उनका साम्प्रदायिकता-विरोध बहुत चुनिंदा है। 

मैं अपने बारे में नहीं कहना चाहता लेकिन प्रसंगवश उल्लेख कर देना ज़रूरी है कि पिछले 40 वर्षों में हिन्दू कट्टरपन, मुस्लिम कट्टररपन और 'क्रांतिकारियों' के कट्टररपन पर लिखने के कारण सबसे धमकियाँ पाता रहा हूँ। हिन्दू कट्टरपंथियों और संघ परिवार ने अनेक बार अनेक प्रकार से धमकाया। मुस्लिम कट्टरपंथियों ने भी अनेक बार धमकियाँ दीं। बुद्ध की प्रतिमा तोड़ने पर तालिबान के ख़िलाफ़ लिखने पर पहली धमकी मिली थी। क्रांतिकारियों की चहेती उपन्यासकार अरुंधती रॉय के बड़े बाँध विरोधी निबंध का खण्डन करने पर उनके एक भक्त ने 'परिणाम' भुगतने की चेतावनी दी थी। इसलिए हिन्दू-मुस्लिम कट्टरपंथी हों या 'क्रांतिकारी' जनवादी, सबके चेहरे से नक़ाब हट चुकी है। 

उस समय बहुत परवाह नहीं होती थी। मैं कम्युनिस्ट पार्टी के साथ था। अब किसी पार्टी में नहीं हूँ। लेखक की स्वाधीनता को सर्वोपरि महत्व देता हूँ। अगर अब कोई हमला हुआ तो न सरकार बचाव में आयेगी, न हिंदुत्ववादी संगठन आयेंगे, न इस्लामी फ़िरके आयेंगे और न 'क्रांतिकारी' बुद्धिजीवी ही आयेंगे। फिर भी मैं साफ़ शब्दों में कहना चाहता हूँ कि सलमान रुश्दी पर हमला करने वाले इस्लामी सम्प्रदायवादी अपनी प्रवृत्तियों में हिंदुत्ववादियों जैसे ही हैं लेकिन खूँखारपन में उनसे बढ़कर हैं। 

जिन्होंने अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा गला रेतकर लोगों का क़त्ल करते इन हत्यारों की वीडियो देखी है, वे यदि मनुष्य हैं तो किसी भी बहाने से इनके पक्ष में नहीं बोल सकते। 

मैं 'क्रांतिकारियों' को चुनौती देता हूँ कि बताएँ, इस्लाम की आलोचना के प्रति मुस्लिम कट्टरपंथी ज़्यादा सहनशील हैं या हिंदुत्व की आलोचना के प्रति हिन्दू रूढ़िवादी ज़्यादा सहनशील हैं? मैं तो संघी हो ही चुका हूँ, लेकिन सिर्फ़ एक पुस्तक का ज़िक्र करता हूँ--

     हिंदू जाति का उत्थान और पतन
     लेखक: रजनीकांत शास्त्री
     प्रकाशक: किताब महल, इलाहाबाद। 

अकेले इस एक किताब को देख लिया जाय और बताया जाय कि इसके लेखक को क्या किसी ने धमकी दी? क्या कभी इस पुस्तक को जलाया गया? यह अब भी आसानी से मिलती है। 

गिरोहों में रहकर जैसे धार्मिक-साम्प्रदायिक कट्टरपंथी लोग आचरण करते हैं, वैसे ही 'क्रांतिकारी' भी करते हैं। ये केवल अपनी मनमानी को ही यथार्थ समझते हैं। जिसके विचार इनसे ज़रा भी अलग हुए, वह प्रतिक्रान्तिकारी, सम्प्रदायवादी, संशोधनवादी वगैरह सब! ये दीन-दुनिया से बेख़बर लाखों का वज़ीफ़ा पाने वाले ही सच्चे 'क्रांतिकारी'! सबपर फ़तवा देने में सक्षम!! फ़तवा, जी हाँ, वैसी ही संकीर्णता, वैसी ही कट्टरता। यही कारण है कि क्रांतिकारियों की कुल जितनी संख्या है, उससे ज़्यादा क्रांतिकारी दलों की संख्या है। फिर भी सारा दोष जनता का कि वह कट्टरपंथियों के चंगुल में फँसी हुई है!!!

भारत यहाँ तक न पहुँचे कि एक लेखक सार्वजनिक स्थल पर उपस्थित हो और हिन्दू या मुस्लिम कट्टरपंथी उसपर हमला कर दे। मॉब लिंचिंग हो या गला रेतकर हत्या, दोनों अभव्यक्ति के लिए एक समान खतरनाक हैं। फिर भी दोनों में एक अंतर है। मॉब लिंचिंग में एक गिरोह एक समूह को झूठी अफ़वाह के ज़रिए इकट्ठा करता है, लेकिन जैसी हत्या तालिबानी मानसिकता के हत्यारे करते हैं, वह एक षड्यंत्र रचकर चोरों की तरह हमला करते हैं। 'क्रांतिकारियों' के लिए पहली कार्रवाई तो अपराध है, दूसरी कार्रवाई अपराध नहीं है क्योंकि इसे अपराध कहते ही 'संघी इतिहास-बोध' का आरोप आ जायेगा। 

फिर भी, किसी बात से डरे बिना हमें कहना होगा कि हर तरह का कट्टररपन अभिव्यक्ति के लिए खतरनाक है, चाहे दक्षिणपंथी हो या वामपंथी, चाहे हिंदुत्ववादी हो या इस्लामपरस्त, चाहे प्रतिक्रियावादी हो या क्रांतिकारी!!







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Comments

  1. शानदार जानकारी हम सबके साथ साझा करने के लिए धन्यवाद

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  2. इस दुनिया को,
    आबाद रखने की यही शर्त है,
    इसका खारापन सोखने को,
    हमारे पास,
    एक समुंदर हो।

    ReplyDelete
  3. प्रभु भल कीन्ह मोहिसिख दीन्ही,
    मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।
    ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी,
    सकल ताड़ना के अधिकारी ।। 3।।

    अर्थ -

    प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी
    अर्थात दंड दिया
    किंतु मर्यादा (जीवो का स्वभाव)
    भी आपकी ही बनाई हुई है
    ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री
    यह सब शिक्षा के अधिकारी हैं..प्रभु भल कीन्ह मोहिसिख दीन्ही,
    मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।
    ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी,
    सकल ताड़ना के अधिकारी ।। 3।।

    अर्थ -

    प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी
    अर्थात दंड दिया
    किंतु मर्यादा (जीवो का स्वभाव)
    भी आपकी ही बनाई हुई है
    ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री
    यह सब शिक्षा के अधिकारी हैं..

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