To our Chief Minister
आदरणीय,
मुख्यमंत्री जी,
परीक्षाओं को घोटाला और भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए कुछ सुझाव-
1- कोई भी परीक्षा एक चरण की नहीं होनी चाहिए, क्योंकि ऐसे में एक ही बार सेटिंग करनी होती है। जैसे तमाम परीक्षाओं मे पहला चरण बहुविकल्पी प्रश्नों का और उसके उपरांत साक्षात्कार होता है ऐसे में यदि इस पहले चरण में कैसे भी सेटिंग कर ली गयी तो साक्षात्कार की भूमिका कम हो जाती है और अगर उस परीक्षा में साक्षात्कार न हो तो फिर क्या कहने। सारा काम एक बार की सेटिंग में सम्पन्न।
2- ऐसे में किसी भी परीक्षा के न्यूनतम दो चरण होने ही चाहिए। इसको हम दरोगा, सिपाही, शिक्षकों या फिर अन्य तृतीय, चतुर्थ श्रेणी की भर्ती परीक्षाओं में देख सकते हैं। जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे है। इसको रोकने का आसान तरीका यही है कि पहले चरण को सिर्फ अर्हता परीक्षा माना जाय (एकदम IAS, PCS की प्रारम्भिक परीक्षा की तरह) क्यों कि दूसरे चरण में पहुँचने वाले अभ्यर्थियों की संख्या सीमित हो जाती है, ऐसे में दूसरे चरण की परीक्षा ज्यादा ईमानदार और निर्णायक हो जाएगी, जिसे संपन्न कराने में सहजता रहेगी। फिर दो बार पैसे का जुगाढ और सेटिंग करना किसी के लिए बहुत आसान नहीं होगा।
3- साथ ही पहले चरण की बहुविकल्पी प्रश्नों के परीक्षा का परिणाम 30 दिन के अंदर घषित होना चाहिए और उसके उपरांत दूसरे चरण की परीक्षा, पहले चरण का परिणाम आने के 15 से 20 दिन के अंदर हर हाल में हो जानी चाहिए। इससे सेटिंग की रही सही संभावना भी खत्म हो जाएगी।
4- अब द्वितीय चरण की परीक्षा पर आते हैं। इसको हम दरोगा या किसी भी स्तर के शिक्षक भर्ती परीक्षा को मान लिया जाय कुछ इस तरीके से कराया जाय। जिसके द्वितीय चरण में समान्य ज्ञान की बहुविकल्पी परीक्षा के साथ लिखित परीक्षा का भी कम से कम एक प्रश्न पत्र अवश्य होना चाहिए। जिसमें निबंध लेखन अनिवार्य रूप से सम्मिलित हो।
इस समय माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा आयोग से शिक्षकों का चयन महज एक बहुविकल्पी परीक्षा पास करके हो जाता है क्योंकि उसके बाद साक्षात्कार में लेन देन की निर्णायक भूमिका शुरू हो जाती है। ऐसी व्यवस्था में ईमानदारी की बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती क्यों कि इसमें भ्रष्टाचार की ढेरों गुंजाइश मौजूद है। ऐसे में यदि इन परीक्षाओं को दो चरण का और साक्षात्कार में दिए जाने वाले अधिकतम और न्यूनतम अंकों का अंतर सिर्फ 10 हो तो, शायद ही कोई पैसा देना चाहेगा। साथ ही साक्षात्कार तक पहुँचे किसी भी अभ्यर्थी को कोई वरीयता अंक नहीं दिया जाना चाहिये जैसे अनुभव, शोध .. ए सब ज्यादातर फर्जी होता है। जो भी वरीयता हो वह सिर्फ परीक्षा form डालने में दी जाय। जिसमें उम्र आदि की छूट मिलती है।
5- इन परीक्षाओं के अतिरिक्त तृतीय, चतुर्थ श्रेणी की दोनों चरण की परीक्षाओं को बहुविकल्पी ही रखा जाय। बस कोई भी ऐसी परीक्षा जो बहुविकल्पी प्रश्नों की हो OMR या On line हुई हो उसका परिणाम हर हाल में 30 दिन के अंदर आ जाना चाहिए।
6- एक नारा होना चाहिए-
no admission, without examination,
इसका अर्थ बच्चों को प्रतिशत वाले खेल से मुक्त करना है। तमाम तरह के courses और कुछ शैक्षिक नौकरियों के लिए, शैक्षिक प्राप्तांकों का एक गुणांक बनाकर merit बना ली जाती है। इससे शैक्षिक स्तर पर अधिक से अधिक प्रतिशतांक लाने का दबाव छात्रों और अभिभावकों पर बन जाता है। ऐसे में पढाई के अलावा शिक्षा माफिया की भूमिका शुरू हो जाती है और ईमानदारी से पढाई करने वाले छात्र नकल माफिया से हार जाते हैं, क्यों कि जिन्हें कुछ नहीं आता उनके नम्बर उनसे बहुत ज्यादा होते है। ऐसे में किसने कितने अंकों से परीक्षा पास की इससे किसी व्यक्ति के भविष्य का निर्णय नहीं होना चाहिए। इसके लिए सिर्फ खुली प्रतियोगिता होनी चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे कोई तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण व्यक्ति IAS, PCS, CM, और PM भी बन सकता है। ऐसा होने पर सच में लोग पढ़ने और सीखने पर जोर देंगे क्यों कि नकल करके पास होने का जो फायदा है वही खत्म हो जाएगा।
आपका-
राजहंस राजू
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