Hindu | हिन्दू.?..??


इस बात से हम इंकार नहीं कर सकते कि हम इस समय एक बडे़ बाजार का हिस्सा हैं, इसमें हमारी मर्जी हो या न हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे में हम ज्यादा देर तक सच्चाई से भाग नहीं सकते, पूरी दुनिया हमारे धर्म, सभ्यता, संस्कृति के बारे में पता नहीं क्या क्या बताती फिर रही है और हम व्यवस्थित ढंग से खुद के बारे बता ही नहीं पा रहे हैं कि हम क्या हैं..? हमारी पहचान वही अंग्रेज़ी, इस्लामिक, कम्युनिस्ट नजरिए वाली अब भी कायम है। अब दुनिया को हमें अपने बारे बताना होगा और इसके लिए तकनीक और परम्परा दोनों की जुगलबंदी करनी होगी। एक तरफ internet है तो दूसरी तरफ कुंम्भ जैसे बड़े मेलों की ताकत का हम इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके साथ ही हमें अपनी तमाम कुरीतियों और दुराग्रहों से मुक्त होकर, खुद को पूरे आत्मविश्वास से दुनिया के सामने प्रस्तुत करना होगा।
    हिन्दू .. क्या है, कौन है, कैसे है? 
जैसे प्रश्न और उनकी व्याख्या यदि anti hindu से सुना जाय तो वह व्यक्ति सिर्फ़ अपनी marketing कर रहा होता है और जिसमें एक पक्षीय अजीबोगरीब तर्कों की भरमार होती है। जिसमें तमाम बातें किसी खास नजरिए से देखी और समझायी जाती हैं,जबकि उसका वास्तविक संदर्भ कुछ और होता है। जिसकी बिलकुल भी चर्चा नहीं होती।
         ऐसे में क्या यह हो सकता है कि इस "कुंम्भ" में "हिन्दू" नाम से एक किताब लोगों के बीच बांटी जाय, जिसमें हमारा एक सामान्य परिचय हो और यह बात खासतौर पर बताया जाय कि जातीय भेदभाव, छुआछूत, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, भ्रूण हत्या जैसी चीजें भारतीय सनातन परम्परा में कभी नहीं थी और साधू, संन्यासी, पुजारी बनने के लिए कोई जातीय बंधन नहीं है, क्योंकि संन्यास ग्रहण करते समय व्यक्ति को अपना नाम, जाति, परिवार सब त्याग कर स्वयं का पिंण्ड दान करना होता है और उसे एक नया नाम दिया जाता है जिसमें कोई जाति नहीं होती।
          इस पुस्तक में हमारी सभी मानयताओं का धार्मिक, आध्यात्मिक परिचय होना चाहिए। जैसे एकेश्वरवाद, ब्रह्म, आत्मा, जीव.. बहुदेववाद क्यों है? प्रकृति पूजा, योग, ध्यान...संस्कार, आश्रम, वर्ण व्यवस्था ... (इसमें अंतिम संस्कार के लिए जलाने के साथ भूमि और जल समाधि की भी मान्यता है। इस बात का भी उल्लेख होना चाहिए)। साथ ही यह बताया जाय कि यह मान्यताएँ किस तरह से व्यक्तियों को स्वतंत्रता देती है कि वह अपनी समझ के अनुसार अपने ईश्वर को रूप और आकार दे सकता है और अपनी एक अलग पूजा पद्धति भी रच सकता है। यह विचार और भी आगे जाता है जिसमें उसे मानने या न मानने पूजने या न पूजने की भी स्वतंत्रता है। यानी आप पूरी तरह नास्तिक रह कर भी उतने ही हिंदू या सनातनी बने रहेंगे।
        अब धर्म ग्रंथो पर आते हैं.. वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, महाभारत ... इनका परिचय भी होना चाहिए जैसे पूरी दुनिया में कितने तरह के रामायण हैं, उनके रचनाकार कौन हैं...
       इसके बाद इस परम्परा से जुड़े सम्प्रदाय...
शैव, वैष्णव, शाक्त ... फिर इनसे जुड़े उप सम्प्रदाय नाथ, वीर शैव... । फिर इसी परम्परा में बौद्ध, जैन, सिख... साथ कमें अखाड़ो की परम्परा... । इसके बाद तीर्थों, मेलों, त्यौहारों का उल्लेख कि कहाँ पर कौन से आयोजन होते हैं।
  यह पुस्तक 100-150 पृष्ठ की होनी चाहिए, जो coloured, बडे़ आकर में हो और सभी भाषाओं में उपलब्ध हो, जिस पर किसी का कोई copyright न हो। जो online, pdf और दूसरे तकनीक मित्रवत (technology friendly) विकल्प में उपलब्ध हो जिसकी भाषा सरल और सामयिक होनी चाहिए। इससे यह होगा कि हिन्दू धर्म से जुड़ी तमाम बातों को जानने के लिए प्रेरित होंगे, तब तमाम ग्रंथों को पढ़ने और जानने की इच्छा जन्म लेगी।
इसके लिए Isha foundation, Art of living, .. और  तमाम अन्य दूसरी संस्थाओं की मदद लिया जा सकता है। बस उन्हें एक मंच पर कुछ समय तक साथ रहना है और इस पुस्तक को तैयार करनी है। वैसे भी सब कुछ पहले से मौजूद है बस एक छोटी सी टीम बनानी है। इस कुंम्भ मेले में इस पुस्तक के साथ रामायण, श्रीमद्भागवत गीता का खूब सारा वितरण किया जाना चाहिए। इससे गीता प्रेस जैसे संस्थान पुनः अपनी आभा प्राप्त कर सकेंगें। साथ में Amazon, flipkart ... जैसे संगठनों की भी मदद ली जा सकती है।

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भारत में बहुसंख्यक हिन्दू निवास करते हैं, एवं वे हिन्दू संस्कृति का पालन करते है। हिन्दू शब्द कहाँ से आया इसको लेकर बहुत समय से लगातार बाद विवाद चलता रहता है, कुछ लोग कहते हैं कि हिन्दू शब्द सिंधु से बना है औऱ यह एक फारसी शब्द है। पर ऐसा कुछ नहीं है हमारे वेदो और पुराणों में हिन्दू शब्द का उल्लेख मिलता है। आज हम आपको बता रहे है हमें हिन्दू शब्द कहाँ से मिला...

हमें बार बार हमेशा झूठ बताया जाता रहा है, तथाकथित इतिहासकार एवं विद्वान भाषाविदों के अनुसार हिन्द-आर्य भाषाओं की 'स्' ध्वनि (संस्कृत का व्यंजन 'स्') फ़ारसी भाषाओं की 'ह्' ध्वनि में बदल जाती है इसलिए सप्त सिन्धु अवेस्तन भाषा (पारसियों की धर्मभाषा) में जाकर हफ्त हिन्दू में परिवर्तित हो गया। इसके बाद फारसियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को 'हिन्दू' नाम दिया। फारस के पतन के बाद जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलंबियों को हिन्दू कहना शुरू कर दिया। इस तरह हिन्दुओं को 'हिन्दू' शब्द मिला।

यदि पारसियों को 'स्' के उच्चारण में दिक्कत होती तो वे सिन्धु नदी को भी हिन्दू नदी ही कहते और पाकिस्तान के सिंध प्रांत को भी हिन्द कहते और सि‍न्धियों को भी हिन्दू कहते। लेकिन आज भी सिन्धु है और सिन्धी भी हैं, ये हिन्द और हिंदू में परिवर्तित क्यों नहीं हुए??? दूसरी बात यह कि उनके अनुसार फिर तो संस्कृत का नाम भी हंस्कृत होना चाहिए। और सबसे बड़ी बात वह फारस को फारह कहते और खुद को फ़ारसी की जगह फ़ारही बोलते...

इस बिल्कुल अतार्किक तथ्य कि हिन्दू शब्द फारसियों ने हमे दिया जो "सिंधु" से "हिन्दू" बना, को आज मैं तथ्यों और प्रमाणों के साथ सिद्ध कर दूंगा, कि हिन्दू शब्द बहुत प्राचीन है और वेद से उत्पत्तित है।

आज जानिए, 
कहाँ से आया हिन्दू शब्द?
और कैसे हुई इसकी उत्पत्ति???

हिन्दू, एक संस्कृत शब्द जो करोड़ो वर्ष प्राचीन है...
संस्कृत के इस शब्द का संधि विच्छेद करें
हीन+दू = हीन भावना + से दूर 
अर्थात जो हीन भावना या दुर्भावना से दूर रहे, मुक्त रहे वो हिन्दू है।

ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया हैं -
"हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरमं। 
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थान प्रचक्षते॥"
अर्थात हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

सिर्फ वेद ही नहीं बल्कि शैव ग्रन्थ में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया हैं -
“हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।”
अर्थात : जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं।

और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है -
”हीनं दुष्यति इति हिन्दू।”
अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है।

पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है -
”हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं।
हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते।।”
अर्थात : जो अपने तप से शत्रुओं का दुष्टों का और पाप का नाश कर देता है वही हिन्दू है।

माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है -
“ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य:।
गौभक्तो भारतगुरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः ।।
अर्थात : ॐकार जिसका मूलमंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, जो गौ भक्त है ,भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है, तथा हिंसा की जो निन्दा करता है, वह हिन्दू है।

तो मित्रों, क्या आपके समझ में आया कि हिंदू शब्द की उत्पत्ति कितनी प्राचीन है? और हमें कैसे बेबकूफ बनाया जाता रहा है???

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