Gilgit-Baltistan

गिलगित-बल्तिस्तान विवाद क्या है ?******************************

C/P
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पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में एक स्वायत्तशासी इलाका है जिसे गिलगित-बल्तिस्तान के नाम से जाना जाता है यह इलाका पहले शुमाली या उत्तरी इलाके के नाम से जाना जाता था। करीब 73 हजार वर्ग किमी. वाले इस स्थान पर 1947 ई. में पाकिस्तान ने अवैध कब्ज़ा कर लिया था।भारत और यूरोपीय संघ इस इलाके को कश्मीर का अभिन्न हिस्सा मानते हैं लेकिन पाकिस्तान की राय इससे अलग है। पाकिस्तान ने 1963 ई. में इस इलाके का हिस्सा अनधिकृत रूप से चीन को सौंप दिया था। इसके बाद 1970 में गिलगित एजेंसी के नाम से यहाँ एक प्रशासनिक इकाई का गठन किया गया। 2009 में गिलगित-बल्तिस्तान अधिकारिता और स्व-प्रशासन आदेश जारी किया गया।

गिलगित-बल्तिस्तान का इतिहास
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साल 1947 तक भारत-विभाजन के समय गिलगित-बल्तिस्तान का क्षेत्र जम्मू और कश्मीर की तरह ना तो भारत का हिस्सा था और न ही पाकिस्तान का। दरअसल 1935 में जम्मू कश्मीर के महाराजा ने गिलगित का इलाका अंग्रेजों को 60 साल के लिए लीज पर दे दिया था अंग्रेज़ इस इलाके का उपयोग अपनी सामरिक रणनीति के तहत करते थे और यहाँ की ऊँची पहाड़ियों पर सैनिकों को रखकर आस-पास के इलाके पर नजर रखते थे। अंग्रेजों की गिलगित-स्काउट्स नाम की एक सैनिक-टुकड़ी यहाँ तैनात रहती थी।

विभाजन के समय डोगरा राजाओं ने अंग्रेजों के साथ अपनी लीज डीड को रद्द करके इस क्षेत्र में अपना अधिकार कायम कर लिया लेकिन गिलगित-स्काउट्स के कमांडर कर्नल मिर्जा हसन खान ने कश्मीर के राजा हरि सिंह के खिलाफ विद्रोह कर दिया और 1 नवम्बर, 1947 को गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी का ऐलान कर दिया।

इससे कुछ ही दिन पहले 26 अक्टूबर, 1947 को हरि सिंह ने जम्मू कश्मीर रियासत के भारत में विलय की मंजूरी दे दी थी गिलगित-बल्तिस्तान की आजादी की घोषणा करने के 21 दिन बाद ही पाकिस्तान ने इस इलाके पर कब्जा जमा लिया जिसके बाद से 2 अप्रैल, 1949 तक गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान के कश्मीर के कब्जे वाला हिस्सा माना जाता रहा।

लेकिन 28 अप्रैल, 1949 को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की सरकार के साथ एक समझौता हुआ जिसके तहत गिलगित के मामले को सीधे पकिस्तान की केंद्र सरकार के अधीनस्थ कर दिया गया।इस करार को कराँची समझौते के नाम से जाना जाता है।

Gilgit Baltistan Dispute : Key Points
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पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर को दो प्रशासनिक हिस्सों में बाँट रखा है – 

1.गिलगित-बल्तिस्तान
2. PoK

पाकिस्तान ने 1947 के बाद बनी संघर्ष-विराम रेखा (जिसे अब नियंत्रण रेखा कहा जाता है) के उत्तर-पश्चिमी इलाके को उत्तरी भाग और दक्षिणी इलाके को PoK के रूप में बाँट दिया।

उत्तरी भाग में ही गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र है पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान को एक अलग भौगोलिक इकाई मानता है।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इस विवादित क्षेत्र से गुजरता है यह चीन की One Belt One Road परियोजना का हिस्सा है।

इसके अलावा चीन ने इस इलाके में खनिज और पनबिजली संसाधनों के दोहन के लिए भी भारी निवेश किया है लेकिन गिलगित-बल्तिस्तान पर पाकिस्तान का कब्ज़ा कहीं से भी जायज नहीं है।

गिलगित-बाल्तिस्तान
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गिलगित-बाल्तिस्तान सात जिलों में बँटा है।

दो जिले बाल्तिस्तान डिवीज़न में और पाँच जिले गिलगित डिवीज़न में हैं।

इस क्षेत्र की अपनी विधानसभा है।

पाक-अधिकृत कश्मीर सुन्नी-बहुल है जबकि गिलगित-बल्तिस्तान शिया-बहुल इलाका है।

इसकी आबादी करीब 20 लाख है।

इसका क्षेत्रफल करीब 73 हजार वर्ग किमी है।
इसका ज्यादातर इलाका पहाड़ी है।

यहाँ 7,000 मीटर से ऊपर वाली 50 से अधिक चोटियाँ हैं।

यहीं दुनिया की दूसरी सबसे ऊँची चोटी K2 है।

विश्व की सबसे लम्बी तीन हिमानियाँ (ध्रुव क्षेत्र को छोड़कर) गिलगित-बल्तिस्तान में ही हैं।

इस इलाके की सीमाएँ भारत, पाकिस्तान, चीन और अफगानिस्तान से मिलती हैं। इसके उत्तर में चीन और अफगानिस्तान, पश्चिम में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत और पूरब में भारत है।

पाकिस्तान यह दावा करता है कि वह गिलगित-बल्तिस्तान के नागरिकों के साथ देश के अन्य नागरिकों के जैसा ही व्यवहार करता है लेकिन स्थानीय लोग पाकिस्तान सरकार पर अपनी अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं।

इस वजह से इस इलाके में कई बार आन्दोलन भी हुए। स्थानीय जनता CPEC को पाकिस्तान सरकार की चाल बताती है लोगों का कहना है कि उनके मानवाधिकार और संसाधन खतरे में है।

भारत का क्या कहना है ?
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भारत का कहना है कि यह इलाका जम्मू-कश्मीर राज्य का अभिन्न हिस्सा है भारत जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से को एक अलग पाकिस्तानी प्रांत बनाये जाने का विरोध कर रहा है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान गिलगित-बल्तिस्तान समेत कश्मीर के उन इलाके से भी हटे जहाँ उसने अवैध कब्ज़ा कर रखा है उधर पाकिस्तान इस इलाके पर अपना कानूनी दावा मजबूत करने की साजिशें रच रहा है। भारत इस इलाके में चीन की गतिविधियों का भी विरोध करता रहा है.


सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण
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गिलगित-बल्तिस्तान पाक-अधिकृत इलाके का हिस्सा है। भौगोलिक स्थिति की वजह से यह इलाका सामरिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है पाकिस्तान और चीन से जुड़े होने के कारण यह इलाका भारत के लिए काफी महत्त्वपूर्ण है। पाकिस्तान और चीन किसी न किसी बहाने इस इलाके में अपने पैर पसारने की कोशिश करते रहे हैं।

चीन ने 60 के दशक में गिलगित-बल्तिस्तान होते हुए काराकोरम राजमार्ग बनाया था इस राजमार्ग के कारण इस्लामाबाद और गिलगित आपस में जुड़ गये। इस राजमार्ग की पहुँच चीन के जियांग्जिग प्रांत के काशगर तक है। इतना ही नहीं, चीन अब जियांग्जिग प्रांत को एक राजमार्ग के जरिये बलूचिस्तान की ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने की योजना पर काम कर रहा है। इसके जरिये चीन की पहुँच खाड़ी समुद्री मार्गों तक हो जायेगी।चीन गिलगित पर भी अपनी पैठ बनाना चाहता है और इसके लिए वह पाकिस्तान का साथ चाहता है क्योंकि गिलगित पर नियंत्रण के बिना ग्वादर का चीन के लिए कोई मतलब नहीं है।

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 #जेनेवा_समझौता....

जेनेवा समझौते में चार संधियां और तीन अतिरिक्त प्रोटोकॉल (मसौदे) शामिल हैं, जिसका मकसद युद्ध के वक्त मानवीय मूल्यों को बनाए रखने के लिए कानून तैयार करना है..।।

मानवता को बरकरार रखने के लिए पहली संधि 1864 में हुई थी. इसके बाद दूसरी और तीसरी संधि 1906 और 1929 में हुई..।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में 194 देशों ने मिलकर चौथी संधि की थी. ।

इंटरनेशनल कमेटी ऑफ रेड क्रास के मुताबिक जेनेवा समझौते में युद्ध के दौरान गिरफ्तार सैनिकों और घायल लोगों के साथ कैसा बर्ताव करना है इसको लेकर दिशा निर्देश दिए गए हैं... इसमें साफ तौर पर ये बताया गया है कि युद्धबंदियों (POW) के क्या अधिकार हैं..। साथ ही समझौते में युद्ध क्षेत्र में घायलों की उचित देखरेख और आम लोगों की सुरक्षा की बात कही गई है. 
जेनेवा समझौते में दिए गए अनुच्छेद 3 के मुताबिक युद्ध के दौरान घायल होने वाले युद्धबंदी का अच्छे तरीके से उपचार होना चाहिए.।

#जेनेवा_समझौते_की_मुख्य_बातें...

★युद्धबंदियों (POW) के साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार नहीं होना चाहिए.
 ★उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होना चाहिए. 
★साथ ही सैनिकों को कानूनी सुविधा भी मुहैया करानी होगी. 
★जेनेवा संधि के तहत युद्धबंदियों को डराया-धमकाया नहीं जा सकता. 
★इसके अलावा उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता. 
★इस संधि के मुताबिक युद्धबंदियों (POW) पर मुकदमा चलाया जा सकता है. 
★इसके अलावा युद्ध के बाद युद्धबंदियों को वापस लैटाना होता है. 
★कोई भी देश युद्धबंदियों को लेकर जनता में उत्सुकता पैदा नहीं कर सकता. 
★युद्धबंदियों से सिर्फ उनके नाम, सैन्य पद, नंबर और यूनिट के बारे में पूछा जा सकता है.
★युद्धबंदी की जाति, धर्म, जन्‍म आदि बातों के बारे में नहीं पूछा जाता.
★किसी देश का सैनिक जैसे ही पकड़ा जाता है उस पर ये संधि लागू होती है. (फिर चाहे वह स्‍त्री हो या पुरुष)
















































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Comments

  1. प्रभु भल कीन्ह मोहिसिख दीन्ही,
    मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्ही।
    ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी,
    सकल ताड़ना के अधिकारी ।। 3।।

    अर्थ -

    प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी
    अर्थात दंड दिया
    किंतु मर्यादा (जीवो का स्वभाव)
    भी आपकी ही बनाई हुई है
    ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और स्त्री
    यह सब शिक्षा के अधिकारी हैं..

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