यदुवंशी क्षत्रिय और कुश वंशी क्षत्रिय दोनों मंडल कमीशन के गुणा गणित में पहले पिछड़ा बने और अब शूद्र बनने कि फ़िराक़ में हैं क्योंकि शासन और सत्ता के समीकरण में यही उनके लिए फायदेमंद है और अब साहित्य भी दलित हो गया है और सोचने कि बात यह है कि रामायण और महाभारत को किस साहित्य के अंतर्गत रखा जाएगा क्योंकि इनके रचनाकार कि जाति भी बतानी पड़ेगी और तब....
चलिए कुछ और बात करते हैं
इन सारी बातों का अर्थ यही है कि बारहवीं शताब्दी से लेकर अब तक अर्थात इस्लामिक राज ( तुर्क, अफगान, मुगल) , इसाई राज ( अंग्रेज, French, पुर्तगाली) और संविधान लागू होने के बाद भी सब ब्राह्मणों का किया धरा है और आज भी सब उन्हीं के हाथ में हैं।
सब व्यर्थ मतलब ए सब करने धरने का कोई मतलब नहीं है। जब ऐसी बर्बरता के बीच भी इन लोगों ने अपनी पहचान बचा के रखी और आज के नव ब्राह्मण जो दलित होने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं वह भी एक तरह का ब्राह्मण वाद ही है जो लोकतंत्र में संख्या बल को ध्यान में रखकर गढ़ा जा रहा है।
खैर सबको अपना एजेंडा चलाने का अधिकार है
बस हिम्मत करिए सच बताइए पर अफसोस इससे वोट नहीं मिलेगा जिसके लिए खेल चल रहा है अब किसको किसका शिकार होना है यह हम खुद तय कर सकते हैं।
अच्छा यह तो कर ही सकते हैं -
खुद पढ़िये और दूसरे पक्ष को भी, देखिये सुनिए
बस समस्या एक ही है थोड़ी मेहनत करनी पड़ती है
एक सलाह ए है कि कृपा करके ब्राह्मणों का गुणगान करना बंद करिये क्योंकि दलित विमर्श में जो लगातार कहा जाता है उसका मतलब तो यही निकलता है कि देखो इतने सबके बाद भी ब्राह्मण कितना ताकतवर है जो इस्लाम और ईसाइयों के बर्बर शासन में भी मजबूती से डटा रहा और आजादी के बाद संविधान लागू होने के बाद भी वह अपनी वैसी ही स्थिति बरकरार किये हुए है सोचने कि बात है कि वह कितना कबिल है...
या फिर यह दलित, पिछड़ा, ब्राह्मणवाद, मनुवाद वाला narrative ही गलत है मतलब ऐसी चीज से लड़ाई लड़ी जा रही है जो है ही नहीं इसी वजह से उससे कोई जीत नहीं पा रहा है क्योंकि यह वंचित और वर्चस्ववाद के बीच लड़ाई है और यह सभी जगह और लोगों के बीच है जहाँ हर आदमी ब्राह्मण बनने के लिए इन नारों का इस्तेमाल कर रहा है और ब्राह्मण बनते (कहीं, किसी जगह, कोई भी व्यक्ति पदस्थ होते) ही उसका लक्ष्य पूरा हो जाता है और एक ऐसे समाजवाद का निर्माण करता है जहाँ सारा साधन और सत्ता सिर्फ उसके परिवार में निहित रहे और इसके लिए नारों कि बहुत अहमियत जो गुलामों को निरंतर गुलाम बनाए रखती है
मनु कहते हैं- जन्मना जायते शूद्र: कर्मणा द्विज उच्यते। अर्थात जन्म से सभी शूद्र होते हैं और कर्म से ही वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बनते हैं। वर्तमान दौर में ‘मनुवाद’ शब्द को नकारात्मक अर्थों में लिया जा रहा है। ब्राह्मणवाद को भी मनुवाद के ही पर्यायवाची के रूप में उपयोग किया जाता है। वास्तविकता में तो मनुवाद की रट लगाने वाले लोग मनु अथवा मनुस्मृति के बारे में जानते ही नहीं है या फिर अपने निहित स्वार्थों के लिए मनुवाद का राग अलापते रहते हैं। दरअसल, जिस जाति व्यवस्था के लिए मनुस्मृति को दोषी ठहराया जाता है, उसमें जातिवाद का उल्लेख तक नहीं है।
मनुस्मृति :
समाज के संचालन के लिए जो व्यवस्थाएं दी हैं, उन सबका संग्रह मनुस्मृति में है। अर्थात मनुस्मृति मानव समाज का प्रथम संविधान है, न्याय व्यवस्था का शास्त्र है। यह वेदों के अनुकूल है। वेद की कानून व्यवस्था अथवा न्याय व्यवस्था को कर्तव्य व्यवस्था भी कहा गया है। उसी के आधार पर मनु ने सरल भाषा में मनुस्मृति का निर्माण किया। वैदिक दर्शन में संविधान या कानून का नाम ही धर्मशास्त्र है। महर्षि मनु कहते है-
धर्मो रक्षति रक्षित:
अर्थात जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है। यदि वर्तमान संदर्भ में कहें तो जो कानून की रक्षा करता है कानून उसकी रक्षा करता है। कानून सबके लिए अनिवार्य तथा समान होता है।
जिन्हें हम वर्तमान समय में धर्म कहते हैं दरअसल वे संप्रदाय हैं। धर्म का अर्थ है जिसको धारण किया जाता है और मनुष्य का धारक तत्व है मनुष्यता, मानवता। मानवता ही मनुष्य का एकमात्र धर्म है। हिन्दू मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख आदि धर्म नहीं मत हैं, संप्रदाय हैं। संस्कृत के धर्म शब्द का पर्यायवाची संसार की अन्य किसी भाषा में नहीं है। भ्रांतिवश अंग्रेजी के ‘रिलीजन’ शब्द को ही धर्म मान लिया गया है, जो कि नितांत गलत है। इसका सही अर्थ संप्रदाय है। धर्म के निकट यदि अंग्रेजी का कोई शब्द लिया जाए तो वह ‘ड्यूटी’ हो सकता है। कानून ड्यूटी यानी कर्तव्य की बात करता है।जिन्हें हम वर्तमान समय में धर्म कहते हैं दरअसल वे संप्रदाय हैं। धर्म का अर्थ है जिसको धारण किया जाता है और मनुष्य का धारक तत्व है मनुष्यता, मानवता। मानवता ही मनुष्य का एकमात्र धर्म है। हिन्दू मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, सिख आदि धर्म नहीं मत हैं, संप्रदाय हैं। संस्कृत के धर्म शब्द का पर्यायवाची संसार की अन्य किसी भाषा में नहीं है। भ्रांतिवश अंग्रेजी के ‘रिलीजन’ शब्द को ही धर्म मान लिया गया है, जो कि नितांत गलत है। इसका सही अर्थ संप्रदाय है। धर्म के निकट यदि अंग्रेजी का कोई शब्द लिया जाए तो वह ‘ड्यूटी’ हो सकता है। कानून ड्यूटी यानी कर्तव्य की बात करता है।
मनु ने भी कर्तव्य पालन पर सर्वाधिक बल दिया है। उसी कर्तव्यशास्त्र का नाम मानव धर्मशास्त्र या मनुस्मृति है। आजकल अधिकारों की बात ज्यादा की जाती है, कर्तव्यों की बात कोई नहीं करता। इसीलिए समाज में विसंगतियां देखने को मिलती हैं। मनुस्मृति के आधार पर ही आगे चलकर महर्षि याज्ञवल्क्य ने भी धर्मशास्त्र का निर्माण किया जिसे याज्ञवल्क्य स्मृति के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी काल में भी भारत की कानून व्यवस्था का मूल आधार मनुस्मृति और याज्ञवल्क्य स्मृति रहा है। कानून के विद्यार्थी इसे भली-भांति जानते हैं। राजस्थान हाईकोर्ट में मनु की प्रतिमा भी स्थापित है।
मनुस्मृति में दलित विरोध :
मनुस्मृति न तो दलित विरोधी है और न ही ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देती है। यह सिर्फ मानवता की बात करती है और मानवीय कर्तव्यों की बात करती है। मनु किसी को दलित नहीं मानते। दलित संबंधी व्यवस्थाएं तो अंग्रेजों और आधुनिकवादियों की देन हैं। दलित शब्द प्राचीन संस्कृति में है ही नहीं। चार वर्ण जाति न होकर मनुष्य की चार श्रेणियां हैं, जो पूरी तरह उसकी योग्यता पर आधारित है। प्रथम ब्राह्मण, द्वितीय क्षत्रिय, तृतीय वैश्य और चतुर्थ शूद्र। वर्तमान संदर्भ में भी यदि हम देखें तो शासन-प्रशासन को संचालन के लिए लोगों को चार श्रेणियों- प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी में बांटा गया है। मनु की व्यवस्था के अनुसार हम प्रथम श्रेणी को ब्राह्मण, द्वितीय को क्षत्रिय, तृतीय को वैश्य और चतुर्थ को शूद्र की श्रेणी में रख सकते हैं। जन्म के आधार पर फिर उसकी जाति कोई भी हो सकती है। मनुस्मृति एक ही मनुष्य जाति को मानती है। उस मनुष्य जाति के दो भेद हैं। वे हैं पुरुष और स्त्री।
मनु कहते हैं-
‘जन्मना जायते शूद्र:’ अर्थात जन्म से तो सभी मनुष्य शूद्र के रूप में ही पैदा होते हैं। बाद में योग्यता के आधार पर ही व्यक्ति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र बनता है। मनु की व्यवस्था के अनुसार ब्राह्मण की संतान यदि अयोग्य है तो वह अपनी योग्यता के अनुसार चतुर्थ श्रेणी या शूद्र बन जाती है। ऐसे ही चतुर्थ श्रेणी अथवा शूद्र की संतान योग्यता के आधार पर प्रथम श्रेणी अथवा ब्राह्मण बन सकती है। हमारे प्राचीन समाज में ऐसे कई उदाहरण है, जब व्यक्ति शूद्र से ब्राह्मण बना। मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुरु वशिष्ठ महाशूद्र चांडाल की संतान थे, लेकिन अपनी योग्यता के बल पर वे ब्रह्मर्षि बने। एक मछुआ (निषाद) मां की संतान व्यास महर्षि व्यास बने। आज भी कथा-भागवत शुरू होने से पहले व्यास पीठ पूजन की परंपरा है। विश्वामित्र अपनी योग्यता से क्षत्रिय से ब्रह्मर्षि बने। ऐसे और भी कई उदाहरण हमारे ग्रंथों में मौजूद हैं, जिनसे इन आरोपों का स्वत: ही खंडन होता है कि मनु दलित विरोधी थे।
अर्थात ब्राह्णों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से, भुजाओं से क्षत्रिय, उदर से वैश्य तथा पांवों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई। दरअसल, कुछ अंग्रेजों या अन्य लोगों के गलत भाष्य के कारण शूद्रों को पैरों से उत्पन्न बताने के कारण निकृष्ट मान लिया गया, जबकि हकीकत में पांव श्रम का प्रतीक हैं। ब्रह्मा के मुख से पैदा होने से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति या समूह से है जिसका कार्य बुद्धि से संबंधित है अर्थात अध्ययन और अध्यापन। आज के बुद्धिजीवी वर्ग को हम इस श्रेणी में रख सकते हैं। भुजा से उत्पन्न क्षत्रिय वर्ण अर्थात आज का रक्षक वर्ग या सुरक्षाबलों में कार्यरत व्यक्ति। उदर से पैदा हुआ वैश्य अर्थात उत्पादक या व्यापारी वर्ग। अंत में चरणों से उत्पन्न शूद्र वर्ग।
यहां यह देखने और समझने की जरूरत है कि पांवों से उत्पन्न होने के कारण इस वर्ग को अपवित्र या निकृष्ट बताने की साजिश की गई है, जबकि मनु के अनुसार यह ऐसा वर्ग है जो न तो बुद्धि का उपयोग कर सकता है, न ही उसके शरीर में पर्याप्त बल है और व्यापार कर्म करने में भी वह सक्षम नहीं है। ऐसे में वह सेवा कार्य अथवा श्रमिक के रूप में कार्य कर समाज में अपने योगदान दे सकता है। आज का श्रमिक वर्ग अथवा चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मनु की व्यवस्था के अनुसार शूद्र ही है। चाहे वह फिर किसी भी जाति या वर्ण का क्यों न हो।
वर्ण विभाजन को शरीर के अंगों को माध्यम से समझाने का उद्देश्य उसकी उपयोगिता या महत्व बताना है न कि किसी एक को श्रेष्ठ अथवा दूसरे को निकृष्ट। क्योंकि शरीर का हर अंग एक दूसरे पर आश्रित है। पैरों को शरीर से अलग कर क्या एक स्वस्थ शरीर की कल्पना की जा सकती है? इसी तरह चतुर्वण के बिना स्वस्थ समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
ब्राह्मणवाद की हकीकत :
ब्राह्मणवाद मनु की देन नहीं है। इसके लिए कुछ निहित स्वार्थी तत्व ही जिम्मेदार हैं। प्राचीन काल में भी ऐसे लोग रहे होंगे जिन्होंने अपनी अयोग्य संतानों को अपने जैसा बनाए रखने अथवा उन्हें आगे बढ़ाने के लिए लिए अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया होगा। वर्तमान संदर्भ में व्यापम घोटाला इसका सटीक उदाहरण हो सकता है। क्योंकि कुछ लोगों ने भ्रष्टाचार के माध्यम से अपनी अयोग्य संतानों को भी डॉक्टर बना दिया।
हमारे संविधान में कहीं नहीं लिखा भ्रष्ट तरीके अपनाकर अपनी अयोग्य संतानों को आगे बढाएं। इसके लिए तत्कालीन समाज या फिर व्यक्ति ही दोषी हैं। उदाहरण के लिए संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान में आरक्षण की व्यवस्था 10 साल के लिए की थी, लेकिन बाद में राजनीतिक स्वार्थों के चलते इसे आगे बढ़ाया जाता रहा। ऐसे में बाबा साहेब का क्या दोष?
मनु तो सबके लिए शिक्षा की व्यवस्था अनिवार्य करते हैं। बिना पढ़े लिखे को विवाह का अधिकार भी नहीं देते, जबकि वर्तमान में आजादी के 70 साल बाद भी देश का एक वर्ग आज भी अनपढ़ है। मनुस्मृति को नहीं समझ पाने का सबसे बड़ा कारण अंग्रेजों ने उसके शब्दश: भाष्य किए। जिससे अर्थ का अनर्थ हुआ। पाश्चात्य लोगों और वामपंथियों ने धर्मग्रंथों को लेकर लोगों में भ्रांतियां भी फैलाईं। इसीलिए मनुवाद या ब्राह्मणवाद का हल्ला ज्यादा मचा।
मनुस्मृति या भारतीय धर्मग्रंथों को मौलिक रूप में और उसके सही भाव को समझकर पढ़ना चाहिए। विद्वानों को भी सही और मौलिक बातों को सामने लाना चाहिए। तभी लोगों की धारणा बदलेगी। दाराशिकोह उपनिषद पढ़कर भारतीय धर्मग्रंथों का भक्त बन गया था। इतिहास में उसका नाम उदार बादशाह के नाम से दर्ज है। फ्रेंच विद्वान जैकालियट ने अपनी पुस्तक ‘बाइबिल इन इंडिया’ में भारतीय ज्ञान विज्ञान की खुलकर प्रशंसा की है।
पंडित, पुजारी बनने के ब्राह्मण होना जरूरी है :
पंडित और पुजारी तो ब्राह्मण ही बनेगा, लेकिन उसका जन्मगत ब्राह्मण होना जरूरी नहीं है। यहां ब्राह्मण से मतलब श्रेष्ठ व्यक्ति से न कि जातिगत। आज भी सेना में धर्मगुरु पद के लिए जातिगत रूप से ब्राह्मण होना जरूरी नहीं है बल्कि योग्य होना आवश्यक है। ऋषि दयानंद की संस्था आर्यसमाज में हजारों विद्वान हैं जो जन्म से ब्राह्मण नहीं हैं। इनमें सैकड़ों पूरोहित जन्म से दलित वर्ग से आते हैं।
महर्षि मनु कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।
हमारे नेताओं को ऐसे समाजवाद का निर्माण करना है जहाँ सारा साधन और सत्ता सिर्फ उसके परिवार में निहित रहे और इसके लिए नारों कि बहुत अहमियत जो गुलामों को निरंतर गुलाम बनाए रखती है
महकुम्भ 2025 महाकुम्भ मिलने, बिछड़ने, खोने, अच्छी-बुरी स्मृतियों कि कहानी कहने की जगह है जहां एक जन समुद्र जाने-अनजाने में गढ़ता है और फिर बारह साल के इंतजार में अपने लोगों को अपनी कहानी सुनाता है और कहानी महाकुम्भ का मायने समझने के लिए नये लोगों को आज कि तरह ही फिर से तैयार कर देती है और उस अनुभव से गुजरने के लिए लोग चल पड़ते हैं और ऐसे ही पिछली बार से बड़ा जनसैलाब तीर्थराज कि पावन भूमि पर एकाकार हो जाता है और सारी समझ, ज्ञान, तर्क,बुद्धि अपनी सीमाओं पर ठहर कर संगम क्षेत्र में आकर एक चित्त महाकुम्भ को निहारने के अतिरिक्त कुछ नहीं रह पाता ... सोचिए महाकुंभ का वास्तविक अर्थ क्या हम/आप समझ पाए हैं तो और गहराई में अगर हम/आप महाकुंभ का अर्थ समझना चाहते हैं तो महाकुम्भ, सनातन, हिंदू, योगी,मोदी,बीजेपी विरोधी लोगों के वीडियो और वक्तव्य देखिए सुनिए कि वह किस तरह के वीडियो फोटो लोड कर रहे हैं और लगातार क्या बातें कह रहे हैं लिख रहे हैं तो आपको ज्यादा बेहतर जवाब मिल जाएगा, किस बात से दुखी हैं, भीड़ से दुखी हैं, जन समुदाय का जो समुद्र है, उससे दुखी हैं, 100 करोड़ से ऊपर हिंदुओं ...
महाकुम्भ, प्रयागराज महाकुम्भ प्रयागराज में आपका स्वागत है महाकुम्भ की तैयारी में हर तरह के लोग अपने-अपने लक्ष्य साधने में लग गए हैं जिसमें पाखंडी, ढोंगी, धूर्त व्यापारी सभी के लिए भरपूर अवसर है हमारे महाकुम्भ में भौतिकता के चरम के अनुभूति आप सहजता से कर सकते हैं और अध्यात्मिक चेतना को ढूंढने, समझने के लिए निकले, भटकते हुए लोगों को भी देख सकते हैं, वहीं दूसरी तरफ जनता जनार्दन का महासमुद्र है जो किसी सुविधा का बहुत आकांक्षी नहीं है वह तो महज गंगा, यमुना, संगम और प्रयागराज में अपनी उपस्थिति मात्र से खुद को धन्य मान लेता है उसकी ज़रूरतें और उम्मीद उतनी ही है जो बड़ी आसानी से पूरी हो जाती है और शहर का सब कुछ उसके लिए अद्भुत है। अभी वह उस औघड़ के सम्मुख है, कुछ डरा डरा तो है पर उत्सुकता कहीं ज्यादा है और वह औघड़ भी नया-नया है कहीं ज्यादा ओवर ऐक्टिंग न हो जाए यह सावधानी भी बरत रहा है। पूरा मेला बहुरूपियों और विदूषकों से भर जाता है जिसमें साधु सन्यासी के भेष में सदा से भीख मांग कर जीवन जीने वाले खानदानी भिखारी से लेकर सीजनल भिखारी बने लोगों की बाढ़ आ जाती है। इधर कुछ सालों से अपने संग...
हम भारतीय यह मोदी सरकार लगातार भारतीय मुसलमानों का हक छीन रही है पहले CAA और अब वक्फ संशोधन एक्ट बना रही है सोचिए भारतीय मुसलमान बेचारा कितना सीधा-साधा है उसे मौलाना और मदरसा से ज्यादा भला क्या चाहिए सरकार है कि जबरदस्ती कह रही है कि सभी गरीब मुसलमान पढ़ लिखकर बाकियों की तरह ही हो जाएं और उसका पंचर बनाने का धंधा उससे छिन जाए, सोचिए अब इससे उसके मौलिक अधिकार छिनेंगे की नहीं, शिक्षित होते ही वह मौलाना, मदरसा और उसके वोट के जो ठेकेदार हैं उनकी रोजी-रोटी भी छीन लेगा और इतने सारे लोग फिर से बेरोजगार हो जाएंगे और दंगा, आतंक, पत्थरबाजी का धंधा करने वाले लोगों का क्या होगा अच्छी खासी रोजी-रोटी खत्म हो जाएगी, ऐसे में भाजपा का भरपूर विरोध होना ही चाहिए क्योंकि जमीन की लूट से माफिया बने कुछ लोग और घरानों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ रही है आइए इसके लिए हम लोग मिलकर मोदी-शाह का विरोध करते हैं सोचिए CAA का खूब विरोध हुआ शाहीन बाग याद है ना, लागू भी हो गया, भाई अब तक कितने भारतीय मुसलमानों की नागरिकता गई उन लोगों को सामने लाना चाहिए, जो लोग एनआरसी, सीएए में क्रोनोलॉजी देख रहे थे कि मुसलमान की नागर...
हमारे नेताओं को ऐसे समाजवाद का निर्माण करना है जहाँ सारा साधन और सत्ता सिर्फ उसके परिवार में निहित रहे और इसके लिए नारों कि बहुत अहमियत जो गुलामों को निरंतर गुलाम बनाए रखती है
ReplyDelete