Jhunjhuna


हम सभी भारतीयों को सब कुछ मुफ्त चाहिए।
  व्यापारी किसी भी तरह का कर नहीं देना चाहता।
किसानों को खाद,  बिजली, पानी बिलकुल मुफ्त चाहिए, साथ ही जो भी, जैसी फसल पैदा कर दे, उसका अधिक  से अधिक समर्थन मूल्य होना चाहिए, वो भी तत्काल क्योंकि ए सबसे बेचारा है।
   सरकारी कर्मचारी को हर समय वेतन वृद्धि और भरपूर छुट्टी चाहिए, साथ ही काम न करने और भ्रष्ट रहने के भरपूर मौके।
    आम आदमी को एक झंडा और झुनझुना चाहिए जो उसकी पसंद का हो, जिसे लेकर चलते-चलते, जब थक जाए तो मनोरंजन के लिए कुछ तो करना होगा, तब मजे से झुनझुना बजाने लगे।
  यही सोच सबका काम आसान कर देती है क्योंकि अब काम करने की जरूरत ही नहीं रह जाती, जो जहाँ है अपना हिस्सा तय करने में लग जाता है। यही हमारे राजनीति का सर्वकालिक चेहरा है कि जब आम जन को अपने जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव के लिए कुछ चाहिए ही नहीं तो बेकार कि कोशिश क्यों की जाये। यहाँ तो सारा काम झुनझुने से ही हो जाता है। तो झुनझुना जिंदाबाद, अब वो कौन दे रहा है इससे क्या फर्क पड़ता है..
      एक और मुफ्त-मुफ्त वाला offer लाइए और फिर देखिए भीड़.... 
    इस कुंभ मेले कुछ संस्थाओं ने श्रीमद्भभागवतगीता मुफ्त देने के बजाय एक न्यूनतम शुल्क रखा है। इसका फायदा यह है कि अनावश्यक भीड़ नहीं होती और एक अच्छी पुस्तक बेहद कम मूल्य पर उसके चाहने वालों को मिल जाती है। बाकि जिसको जो जैसा समझना हो उसकी मर्जी...

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