कर्जा माफ है


हमारे गाँव में योगी के किसान कर्ज माफी के ऐलान से काफी लोग दुःखी, नाराज और परेशान हैं। सबसे बड़ा वर्ग उन लोगों का है जिन्होंने कोई कर्ज नहीं लिया था उनको सबसे ज्यादा ताना सुनना पड़ रहा है -
      "अउर कंजूसी से रहिक कम पइसा में  काम चलाव, फलनवा सरकारी नउकरी करथअ तबउ एक लाख मारि लेहेसि अउर तोहरे चक्कर में इहाँ कुछु नाहीं मिला अब अउर देश दुनिया क जानकारी देत फिरअ वोसे का मिला फलाने उहीं पइसा से फटफटिया खरीदे रहेन सब जानत थिन अब तोहार फिलासफी केउ न सुनी अबकी दाँई हमहू पचे करजा लेब ऊ योगिया के वोट त हमहूँ देहे हई"
उसके बाद दूसरे लोगों का नम्बर आता है जो समय पर ईमानदारी से पैसे लौटा रहे हैं-
     "अउर ईमानदार बनअ कहत रहे कि योगी क सरकार बनी अउर करजा माफ होइ जाए पर मानअ तब तऊ ई बडका गांधी बनही अब जबकि केवल नोटइ वाला गांधी चलथिन उहउ अपने जेब में रहहि चाहे एनकर बस चलइ त घर बेंचिक सरकारी करजा दइ आवइं अब भोगअ एक लाख क घाटा त कराइ देहय"
अब सही गलत का फैसला कौन करे? शायद ईमानदार, सीधा, मूर्ख ... पर्यायवाची हो गए हैं?
-rajhansraju

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