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सोचिए? सभझिए? कहिए हम आजाद है?


ताकत के साथ जिम्मेदारी का होना ही उसे सार्थक बनाता है अन्यथा इस ताकत का परिणाम किसी खतरनाक अपराधी (श्वेतवसन भी) या उसके अपने संगठन के रूप में सामने आता है जो आधुनिक, उदारवादी समाज के विरुद्ध होता है। ऐसे संगठनों और लोगों को भरपूर जनसमर्थन हासिल होता है जिसका कारण आम जनता में उस मसीहा या हीरो को खोजने और पाने की इच्छा है जो आते ही सबकुछ ठीक कर देगा एक दम धार्मिक कहानियों जैसा और उन्हीं कहानियों के सच होने की उम्मीद में न जाने कैसे-कैसे लोगों की भक्ति करने लग जाता है। इसका परिणाम हम तमाम धार्मिक गुरूओं की भव्य सभाओं के रूप में देख सकते हैं उसका नाम कुछ भी हो सकता है पर उनमें जो समानता है वह ताकत और उसके प्रदर्शन का है और उनका मकसद डराना है और यह डराने को प्रक्रिया अनवरत जारी है। इसके लिए किसी एक संगठन या व्यक्ति को श्रेय नहीं दिया जाना चाहिए। ज्यादातर प्रतिक्रिया में लोगों को संगठित किया जाना आसान होता है और यह प्रतिक्रिया पहले डर, फिर सुरक्षा बोध से शुरू होती है। इसी भ्रम में लोग अपनी आजादी किसी और के हाथ में सौंप देते हैं। जहाँ सबसे पहले उनकी आजाद सोच खत्म की जाती है और "यही अंतिम सच है" वाला जहर पिलाया जाता है। अब ऐसे लोगों को कोई भी झंडा, डंडा.. पकड़ाया जा सकता है।
इसको हम तमाम आतंकी संगठनों और जातीय, धार्मिक गिरोहों को देखकर समझ सकते हैं कि वो जिस कथित समाज  का प्रतिनिधि होने का दावा करते हैं वास्तव में उसके लिए उन्होंने क्या किया है और जहाँ तक करने की बात है शिक्षा के सिवा करने के लिए कुछ है नहीं और शिक्षा सिर्फ किताबों में नहीं है अर्थात शिक्षा वह सबकुछ है जो लोगों को न केवल बौद्धिक रूप से बल्कि सामाजिक, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाती हो और किसी भी व्यक्ति को ए संगठन इस तरह के अधिकार नहीं देते इसके लिए वो सदैव अतीत में लौटना चाहते है वो कभी तर्क या विज्ञान की बात नहीं करते बल्कि धार्मिक कथाओं को विज्ञान सम्मत साबित करने की कोशिश करते रहते हैं इनको सबसे ज्यादा डर आधुनिकता से लगता है क्योंकि आधुनिकता की पहली शर्त सोचने, समझने और आगे बढ़ कर उसे अपनाने की आजादी है जो निःसंदेह  उदार बनाती है तब किसी जात, धर्म, कपड़े, खाने से डर नहीं लगता।
आज हम विधिक रूप से आजाद हैं पर मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए है। इसको हम अपने कार्य व्यवहार में देख सकते हैं कि हम किस तरह के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक दंभ का प्रदर्शन करते हैं। जिसमें शोषित से शोषक बनने की इच्छा साफ झलकती है और विधिक आजादी का सबसे अच्छा इस्तेमाल एक नए तरह का गुलाम बनने और बनाने के लिए किया जा रहा है।
rajhansraju

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Comments

  1. आज हम विधिक रूप से आजाद हैं पर मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए है। इसको हम अपने कार्य व्यवहार में देख सकते हैं कि हम किस तरह के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक दंभ का प्रदर्शन करते हैं। जिसमें शोषित से शोषक बनने की इच्छा साफ झलकती है और विधिक आजादी का सबसे अच्छा इस्तेमाल एक नए तरह का गुलाम बनने और बनाने के लिए किया जा रहा है।

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  2. चौखट जिस दीवार में था
    उससे जब दरवाजा टकराया
    कुंडी का निशान दीवार पर उभर आया
    दरवाजा मुस्कराया,
    उसने पूरी ताकत लगाया था

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